चलें गाँव की ओर जहाँ पर हरे खेत लहराते,
मेड़ों पर है कृषक घूमते सुख से गीत गाते।
गेहूँ बना मटर जौ लेकर सिर पर भार खरे हैं,
बीज-बीज में *प्रहरी* जैसे दिखते वृक्ष अड़े हैं।
चले गाँव की ओर झोंपड़ी जहाँ झुके धरती में,
तरु के नीचे खेल रहे हैं बच्चे निज मस्ती में।
कटी पर लिए गगरिया गोरी आती है बलखाती,
देख किसी गुरुजन को सम्मुख सहसा शरमा जाती।
quetion:kavi ne prhri kinhe khaa ay
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चलें गाँव की ओर, जहाँ पर हरे खेत लहराते,
मेड़ों पर हैं कृषक घूमते, सुख से विरहा गाते।
गेहूँ चना मटर जो सिर पर लेकर भार खड़े हैं,
बीच-बीच में प्रहरी जैसे दिखते वृक्ष अड़े हैं।
चलें गाँव की ओर जहाँ, झोपड़े जहाँ झुके धरती में,
तरु के नीचे खेल रहे हैं बच्चे निज मस्ती में।
कटि पर लिए गगरिया गोरी आती है बलखाती,
देख किसी गुरुजन को सम्मुख सहसा शरमा जाती।
¿ कवि ने ने प्रहरी किन्हें कहा है ?
➲ कवि ने इस कविता में प्रहरी वृक्षों को कहा है।
कवि कहता है कि बिरहा के गीत गाते किसान जब खुशहाली के गीत गाते और अपने सिर पर गेहूँ, चना, मटर आदि गट्ठर लेकर चलते हैं, रास्ते के वृक्ष उनके प्रहरी के रूप में खड़े रहते हैं।
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kabi ne prahari briksh ko kaha hai
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