चल पग दीपशिखा के घर
गृह, मग, वन में आया वसत!
सुलगा फाल्गुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाओं में अनंत
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फैला उरउर में
मधुर दाह
आया वसंत, भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह!
पल्लव-पल्लव में नवल रुधिर
पत्रों में मांसल रंग खिला,
आया नीली-पीली लौ से
पुष्पों के चित्रित दीप जला!
अधरों की लाली से चुपके
कोमल गुलाब के गाल लजा,
आया, पंखड़ियों को काले-
पीले धब्बों से सहज सजा!
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What is this is this is a poem
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