Social Sciences, asked by ajeetsingh206624, 6 months ago

चम्पारण किसान आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिये।​

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Answered by siddhi7479
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उत्तर बिहार में नेपाल से सटे हुए चंपारण जिले में नील की खेती की प्रथा थी. इस क्षेत्र में बागान मालिकों को जमीन की ठेकेदारी अंग्रेजों द्वारा दी गई थी. बागान मालिकों ने “तीन कठिया प्रणाली” लागू कर रखी थी. तीन कठिया प्रणाली के अनुसार हर किसान को अपनी खेती के लायक जमीन के 15% भाग में नील की खेती करनी पड़ती थी. दरअसल नील (indigo) नकदी फसल (cash crop) माना जाता था. नकदी अर्थात् जिसको बेचने से अच्छी-खासी आमदनी होती थी परन्तु किसान खुद के उगाये नील को बाहर नहीं बेच सकते थे. उन्हें बाज़ार मूल्य से कम कीमत पर बागान मालिकों को बेचना पड़ता था. यह किसानों पर अत्याचार था. उनका आर्थिक शोषण था. ऊपर से नील की खेती से खेत की उर्वरता भी कम हो जाती थी.

1900 ई. के बाद जब नील की खपत लोग कम करने लगे तो नील (indigo) का दाम बाजार में गिरने लगा. बागान मालिकों को घाटे का सामना करना पड़ा. मगर इस घाटे की भरपाई अंग्रेजों के इशारों पर बागान मालिक उल्टे किसानों से ही करने लगे. किसानों पर नए-नए कर आरोपित किए जाने लगे. यदि कोई किसान नील की खेती नहीं करना चाहता तो उसे अपने मालिक को एक बड़ी राशि “तवान” के रूप में देनी पड़ती थी. उनसे बेगार भी लिया जाता था. चंपारण की खेती करनेवाले किसानों की स्थिति बंगाल के किसानों से भी अत्यधिक दयनीय थी.

नील की खेती के दौरान हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध चंपारण में किसानों (farmers of Champaran) ने हर बार विरोध प्रकट किया. 1905-08 के बीच मोतिहारी और बेतिया से सटे हुए इलाकों में किसानों ने पहली बार बड़े पैमाने पर आन्दोलन का सहारा लिया. इस आन्दोलन के दौरान हिंसा भी हुई लेकिन सरकार और नील किसानों पर इसका कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ा. किसानों पर आन्दोलन करने के लिए मुक़दमे चलाये गए. अनेक किसानों को जेल में डाल दिया गया. लेकिन किसानों ने हिम्मत नहीं हारी. वे अंत तक संघर्ष करते रहे.

इस आन्दोलन में किसानों की सहायता कुछ सम्पन्न किसानों और कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भी की. 1916 ई. में गांधीजी को राजकुमार शुक्ल के द्वारा चंपारण में आमंत्रित किया गया. 1917 ई. में गाँधीजी चंपारण आये. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ अनुग्रह नारायण सिंह, आचार्य कृपलानी और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं के सहयोग से उन्होंने चंपारण की दयनीय स्थिति का जायजा लिया. बड़ी संख्या में किसान निलहों (बागान मालिकों) के अत्याचारों की शिकायत लेकर गाँधीजी के शरण में पहुँचे. गाँधीजी ने किसानों को अहिंसात्मक और असहयोगात्मक रवैया अपनाने का आग्रह किया. इससे किसानों में उत्साह का नया संचार हुआ और उनके बीच एकता बढ़ी.

सरकार गाँधीजी की लोकप्रियता को देखकर चिंतित हो उठी. उन्हें जबरन गिरफ्तार कर लिया गया और बिना सर-पाँव के आधार पर उनपर मुकदमा चलाया जाने लगा. लेकिन गाँधीजी को शीघ्र ही छोड़ दिया गया. किसानों के शिकायतों की जाँच के लिए सरकार ने एक समिति बनाई. इस समिति में गाँधीजी को भी एक सदस्य के रूप में रखा गया. समिति की सिफारिशों के आधार पर चंपारण कृषि अधिनियम (Champaran Agrarian Act) बना. इस अधिनियम के जरिये तिनकठिया-प्रणाली को खत्म कर दिया गया. किसानों को इससे बहुत बड़ी राहत मिली. किसानों में नई चेतना जगी और वे भी राष्ट्रीय आन्दोलन को अपना समर्थन देने लगे.

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