can anyone answer essay in hindi for class 6 please
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Which essay in Hindi ??????
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निबंध का अर्थ है-बँधा हुआ यानी एक सूत्र में बँधी हुई रचना। जब किसी विषय पर क्रमबद्धता के साथ विचारों को प्रकट किया जाता है, तो ऐसा लेख निबंध कहलाता है। निबंध किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। साधारण रूप से निबंध के विषय परिचित होते हैं यानी जिनके बारे में हम सुनते, देखते व पढ़ते रहते हैं, जैसे धार्मिक त्योहार, विभिन्न प्रकार की समस्याएँ राष्ट्रीय त्योहार, मौसम आदि। निबंध लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।
निबंध निर्धारित शब्द सीमा के अंतर्गत ही लिखा गया हो।
निबंध के वाक्य क्रमबद्ध और सुसंबद्ध होने चाहिए तथा विचार मौलिक हों।
निबंध की भाषा सरल, स्पष्ट व प्रभावशाली होनी चाहिए।
सभी अनुच्छेद एक-दूसरे से जुड़े हों।
निबंध में लिखे वाक्य छोटे और प्रभावशाली होने चाहिए।
निबंध लिखने के बाद उसे एक बार अवश्य पढ़ लें, ताकि यदि लिखते समय कोई बात छूट गई हो तो वह फिर से लिखी जा सके।
निबंधों की शब्द सीमा
कक्षा 6 – 150 से 175 शब्द
कक्षा 7 – 175 से 200 शब्द
कक्षा 8 – 200 से 250 शब्द
निबंध कई प्रकार के हो सकते हैं; जैसे वर्णनात्मक, विचारात्मक तथा भावात्मक। मुख्य रूप से निबंध के निम्नलिखित तीन अंग होते हैं।
भूमिका – भूमिका ऐसी होनी चाहिए जो निबंध के प्रति पढ़ने वाले की उत्सुकता को बढ़ाए।
विषय विस्तार – इसमें तीन से चार अनुच्छेदों में विषय के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किए जाते हैं। इसमें मुख्य भाषा विषय से संबंधित तथा विस्तृत होता है।
उपसंहार – यह निबंध के अंत में लिखा जाता है। इस अंग में निबंध में लिखी गई बातों के सार के रूप में एक अनुच्छेद में लिखा जाता है। आगे कुछ छात्रोपयोगी निबंध नमूने के तौर पर दिए जा रहे हैं।
निबंध लेखन का अभ्याम
1. विद्यार्थी जीवन
विद्यार्थी का जीवन समाज व देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ है, क्योंकि समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर करती है? अतः विद्यार्थी जीवन पूर्णतया अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज व देश बनेगा।
विद्यार्थी जीवन को स्वर्णिम काले है। इसी काल में भावी जीवन की तैयारी की जाती है तथा शक्तियों का विकास किया जाता है। इस काल में बालक के मस्तिष्क रूपी स्लेट पर कुछ अंकित हो जाता है। इसी काल में भावी जीवन की भव्य इमारत की आधारशिला का निर्माण होता है। यह आधारशिला जितनी मजबूत होगी, भावी जीवन उतना ही सुदृढ़ होगा। इस काल में विद्याध्ययन तथा ज्ञान प्राप्ति पर ध्यान न देने वाले विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते।
विद्यार्थी जीवन की महत्ता को जानते हुए प्राचीन काल में विद्यार्थी को घरों से दूर गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था, गुरु के कठोर अनुशासन को उसे पालन करना पड़ता था। गुरु अपने शिष्यों को तपा-तपाकर स्वर्ण बना देता था।
लेकिन आधुनिक युग में विद्यार्थी विद्यालयों में विद्याध्ययन करता है। आज गुरु ओं के कठोर अनुशासन का अभाव है। आज शिक्षा का संबंध धन से जोड़ा जाता है। विद्यार्थी यह समझता है कि वह धन देकर विद्या प्राप्त कर रहा है। उसमें गुरुओं के प्रति सम्मान के भाव की कमी पाई जाती है। शिक्षा में नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इन्हीं कारणों से आज विद्यार्थी अनुशासनहीन पश्चिमी सभ्यता का अनुयायी तथा भारतीय संस्कृति से दूर हो गया है।
आदर्श विद्यार्थी के गुणों की चर्चा करते हुए कहा गया है
काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन पंचलक्षणं ॥
अर्थात विद्यार्थी को कौए के समान चेष्ठावान, बगुले के समान एकाग्रचित्त, कुत्ते के समान कम सोने वाला, कम खाने वाला तथा विद्याध्ययन के लिए त्याग करने वाला होना चाहिए। दुर्भाग्य का विषय है कि आधुनिक विद्यार्थी में इन गुणों का अभाव पाया जाता है। विद्यार्थी ही देश के भविष्य होते हैं। इसलिए विद्यार्थियों में विनयशीलता, संयम आज्ञाकारिता जैसे गुणों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।
आज के विद्यार्थी वर्ग के पतन के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। शिक्षाविदों का यह दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ तो साथ ही विद्यार्थियों को भी कर्तव्य है कि वे भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्प हों।