can anyone can send plz it's urgent
Attachments:
Answers
Answered by
2
योग स्वास्थ्य का पूरा विज्ञान है। इसका संबंध शरीर के सारे अंगों के अच्छी तरह से काम करने, उनके बीच सही तरह से तालमेल के अलावा मन के सही रूप में काम करने की समझ से होता है। ये आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से इस तरह से अलग होता है कि इस प्रणाली का संबंध सिर्फ रोगों, उनके उपचार और उनको ठीक करने से होता है। जबकि योग की पद्धतियां इस रूप से गठित हुई हैं कि वे न सिर्फ शरीर के अलग-अलग अंगों की ताकत को बनाए रखती है बल्कि उन्हें बढ़ाती भी है। जिससे किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ और रोगमुक्त जीवन जीने को मिलता है। रोजाना योगासन
करने से न सिर्फ शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है बल्कि रोजाना के जीवन के अलग-अलग कारणों से होने वाले शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक असंतुलन का भी निरोध होता है। अपनी प्राकृतिक अवस्था में अगर शरीर के सारे अंग सही तरीके से काम करते हैं तो वैसी हालत को अच्छा स्वास्थ्य कहा जाता है। अगर शरीर के किसी अंग में कोई विसंगति या असामान्यता आ भी जाती है तो वह भाग अच्छे स्वास्थ्य की कोशिश करता है। स्वास्थ्य प्राप्ति में मददगार कई उपकरण या तरीकों में योग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
शरीर की संरचना करने वाले तंत्र के 3 उपखंड हैं। पहले उपखंड को `अंतरा संरचनात्मक समूह´ कहा जाता है और इसमें कंकाल, मांसपेशियां और अध्यावरणीय तंत्र आती है। दूसरा उपखंड है `नियंत्रक समूह´ इस उपखंड में स्नायुतंत्र और अंतस्रावी तंत्र आते हैं। तीसरा उपखंड है `निर्वाह समूह´ इस उपखंड में बाकी प्रणालियां जैसेकि सांस लेने की नली, भोजन पचाने की नली, खराब पदार्थों को बाहर निकालने वाली नली, दिल में खून पहुंचाने वाली नली, प्रतिरक्षा प्रणाली,
लसिका प्रणाली तथा प्रजनन प्रणाली आती है। अच्छे स्वास्थ्य की स्थिति की संरचना में बहुत सी विभिन्नताएं होते हुए भी ये सारी प्रणालियां बहुत ही संतुलित तालमेल से काम करती हैं। योग भी इन सारी प्रणालियों पर व्यवस्थित रूप से काम करता है और उन्हें सही और संतुलित स्थिति में रखता है।
जब कोई व्यक्ति अपने शरीर की सही तरीके से देखभाल नही करता या उसका ध्यान नही रखता तो उसके शरीर में बहुत से रोग पैदा हो जाते हैं। इसके अलावा आज के आधुनिक और मशीनी युग में हम कई घंटों तक स्वच्छ वायु और प्रकाश के बिना, पूरी तरह से नींद और आराम ना मिल पाने के कारण, शरीर के अलग-अलग अंगों को सिकोड़ लें, असंतुलित भोजन और अनियोजित क्रिया-कलापों के कारण असंख्य समस्याओं व रोगों की चपेट में आ जाते हैं। अगर हम सालों तक इस प्रकार की अस्वस्थकारी जीवनचर्या व्यतीत कर चुके हैं तो फिर भी योग शरीर की सामान्य जैविक, जैव रासायनिक तथा सरंचनात्मक गतिवधियों को प्राप्त करने में काफी कुछ कर सकता है।
योग की दार्शनिकता का आयाम बहुत व्यापक है तथा हमारा यह भौतिक शरीर तो उसका एक पक्ष मात्र है। पूरे स्वास्थ्य के तो मन तथा आत्मा भी सामान महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं और योग हमेशा मन, शरीर और आत्मा के कार्यों के समाकलन पर विशेष ध्यान देता है। प्राचीन भारतीय दार्शनिकता के मुताबिक अस्तित्व पर 5 आवरण होते हैं। इनमें से प्रथम तथा सबसे आंतरिक है- भौतिक शरीर, दूसरा प्राण या तेजस् शरीर जिसके माध्यम से जीवनीशक्ति नाड़ियो में प्रवाहित होती है। तीसरा आवरण मन है जो भावनाओं व विचारों का केंद्र होता है। चतुर्थ आवरण बुद्धि है यह आदर्श विचारों एवं ज्ञान का आवरण होता है जबकि अंतिम पांचवा तथा सबसे बाहरी आवरण परमानंद होता है जिसमें सांसारिक संचेतना भी शामिल रहती है।
अस्तित्व के इन आवरणों के असंतुलन से ही अलग-अलग रोग आ जाते हैं। शरीर, प्राण और मन इन तीनों शुरुआती आवरणों में चूंकि अंहभावना सबसे ऊपर होती है इस कारण इन तीनों आवरणों की समरसता आसानी से बाधित हो सकती है। चतुर्थ और पांचवा आवरण विस्तृत जागतिक संचेतना से प्राकारित होता है और व्यापक नहीं बनाया जा सकता है। जब कोई व्यक्ति स्वस्थ होता है तो सबसे ऊपरी आवरण की सकारात्मक ऊर्जा नीचे आवरणों से रिसकर अपनी सभी क्रियाओं में पूरी समरसता और संतुलन बनाती है। लेकिन ऊपरी आवरण में तो यद्यपि समरसता सतत बनी रहती है। परन्तु निचले आवरणों के असंतुलन के कारण परमानंद के मुक्त प्रवाह में रुकावट आ सकती है।
करने से न सिर्फ शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है बल्कि रोजाना के जीवन के अलग-अलग कारणों से होने वाले शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक असंतुलन का भी निरोध होता है। अपनी प्राकृतिक अवस्था में अगर शरीर के सारे अंग सही तरीके से काम करते हैं तो वैसी हालत को अच्छा स्वास्थ्य कहा जाता है। अगर शरीर के किसी अंग में कोई विसंगति या असामान्यता आ भी जाती है तो वह भाग अच्छे स्वास्थ्य की कोशिश करता है। स्वास्थ्य प्राप्ति में मददगार कई उपकरण या तरीकों में योग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
शरीर की संरचना करने वाले तंत्र के 3 उपखंड हैं। पहले उपखंड को `अंतरा संरचनात्मक समूह´ कहा जाता है और इसमें कंकाल, मांसपेशियां और अध्यावरणीय तंत्र आती है। दूसरा उपखंड है `नियंत्रक समूह´ इस उपखंड में स्नायुतंत्र और अंतस्रावी तंत्र आते हैं। तीसरा उपखंड है `निर्वाह समूह´ इस उपखंड में बाकी प्रणालियां जैसेकि सांस लेने की नली, भोजन पचाने की नली, खराब पदार्थों को बाहर निकालने वाली नली, दिल में खून पहुंचाने वाली नली, प्रतिरक्षा प्रणाली,
लसिका प्रणाली तथा प्रजनन प्रणाली आती है। अच्छे स्वास्थ्य की स्थिति की संरचना में बहुत सी विभिन्नताएं होते हुए भी ये सारी प्रणालियां बहुत ही संतुलित तालमेल से काम करती हैं। योग भी इन सारी प्रणालियों पर व्यवस्थित रूप से काम करता है और उन्हें सही और संतुलित स्थिति में रखता है।
जब कोई व्यक्ति अपने शरीर की सही तरीके से देखभाल नही करता या उसका ध्यान नही रखता तो उसके शरीर में बहुत से रोग पैदा हो जाते हैं। इसके अलावा आज के आधुनिक और मशीनी युग में हम कई घंटों तक स्वच्छ वायु और प्रकाश के बिना, पूरी तरह से नींद और आराम ना मिल पाने के कारण, शरीर के अलग-अलग अंगों को सिकोड़ लें, असंतुलित भोजन और अनियोजित क्रिया-कलापों के कारण असंख्य समस्याओं व रोगों की चपेट में आ जाते हैं। अगर हम सालों तक इस प्रकार की अस्वस्थकारी जीवनचर्या व्यतीत कर चुके हैं तो फिर भी योग शरीर की सामान्य जैविक, जैव रासायनिक तथा सरंचनात्मक गतिवधियों को प्राप्त करने में काफी कुछ कर सकता है।
योग की दार्शनिकता का आयाम बहुत व्यापक है तथा हमारा यह भौतिक शरीर तो उसका एक पक्ष मात्र है। पूरे स्वास्थ्य के तो मन तथा आत्मा भी सामान महत्वपूर्ण पक्ष होते हैं और योग हमेशा मन, शरीर और आत्मा के कार्यों के समाकलन पर विशेष ध्यान देता है। प्राचीन भारतीय दार्शनिकता के मुताबिक अस्तित्व पर 5 आवरण होते हैं। इनमें से प्रथम तथा सबसे आंतरिक है- भौतिक शरीर, दूसरा प्राण या तेजस् शरीर जिसके माध्यम से जीवनीशक्ति नाड़ियो में प्रवाहित होती है। तीसरा आवरण मन है जो भावनाओं व विचारों का केंद्र होता है। चतुर्थ आवरण बुद्धि है यह आदर्श विचारों एवं ज्ञान का आवरण होता है जबकि अंतिम पांचवा तथा सबसे बाहरी आवरण परमानंद होता है जिसमें सांसारिक संचेतना भी शामिल रहती है।
अस्तित्व के इन आवरणों के असंतुलन से ही अलग-अलग रोग आ जाते हैं। शरीर, प्राण और मन इन तीनों शुरुआती आवरणों में चूंकि अंहभावना सबसे ऊपर होती है इस कारण इन तीनों आवरणों की समरसता आसानी से बाधित हो सकती है। चतुर्थ और पांचवा आवरण विस्तृत जागतिक संचेतना से प्राकारित होता है और व्यापक नहीं बनाया जा सकता है। जब कोई व्यक्ति स्वस्थ होता है तो सबसे ऊपरी आवरण की सकारात्मक ऊर्जा नीचे आवरणों से रिसकर अपनी सभी क्रियाओं में पूरी समरसता और संतुलन बनाती है। लेकिन ऊपरी आवरण में तो यद्यपि समरसता सतत बनी रहती है। परन्तु निचले आवरणों के असंतुलन के कारण परमानंद के मुक्त प्रवाह में रुकावट आ सकती है।
ananya1233:
thanks
Answered by
1
hey ananya how are u......
THIS IS UR EXACT ANSWER
I HOPE IT HELPS U PLZ MRK ME BRAINLIEST.......
THIS IS UR EXACT ANSWER
I HOPE IT HELPS U PLZ MRK ME BRAINLIEST.......
Attachments:
Similar questions