Hindi, asked by SHOGUNXGAMING, 10 months ago

CAN ANYONE GIVE ME THE SUMMARY OF POEM "'SNEH SHAPAT' BY BHAVANI PRASAD MISHRA"​

Answers

Answered by radhasonawane2004
1

Answer:

हो दोस्त या कि वह दुश्मन हो,

हो परिचित या परिचय विहीन;

तुम जिसे समझते रहे बड़ा

या जिसे मानते रहे दीन;

यदि कभी किसी कारण से

उसके यश पर उड़ती दिखे धूल,

तो सख्त बात कह उठने की

रे, तेरे हाथों हो न भूल।

मत कहो कि वह ऐसा ही था,

मत कहो कि इसके सौ गवाह;

यदि सचमुच ही वह फिसल गया

या पकड़ी उसने गलत राह -

तो सख्त बात से नहीं, स्नेह से

काम जरा लेकर देखो;

अपने अंतर का नेह अरे,

देकर देखो।

कितने भी गहरे रहें गर्त,

हर जगह प्यार जा सकता है;

कितना भी भ्रष्ट जमाना हो,

हर समय प्यार भा सकता है;

जो गिरे हुए को उठा सके

इससे प्यारा कुछ जतन नहीं,

दे प्यार उठा पाए न जिसे

इतना गहरा कुछ पतन नहीं।

देखे से प्यार भरी आँखें

दुस्साहस पीले होते हैं

हर एक धृष्टता के कपोल

आँसू से गीले होते हैं।

तो सख्त बात से नहीं

स्नेह से काम जरा लेकर देखो,

अपने अंतर का नेह

अरे, देकर देखो।

तुमको शपथों से बड़ा प्यार,

तुमको शपथों की आदत है;

है शपथ गलत, है शपथ कठिन,

हर शपथ कि लगभग आफत है;

ली शपथ किसी ने और किसी के

आफत पास सरक आई,

तुमको शपथों से प्यार मगर

तुम पर शपथें छायीं-छायीं।

तो तुम पर शपथ चढ़ाता हूँ :

तुम इसे उतारो स्नेह-स्नेह,

मैं तुम पर इसको मढ़ता हूँ

तुम इसे बिखेरो गेह-गेह।

हैं शपथ तुम्हारे करुणाकर की

है शपथ तुम्हें उस नंगे की

जो भीख स्नेह की माँग-माँग

मर गया कि उस भिखमंगे की।

हे, सख्त बात से नहीं

स्नेह से काम जरा लेकर देखो,

अपने अंतर का नेह

अरे, देकर देखो।

Explanation:

Similar questions