Hindi, asked by vinaytiyakaushik, 9 months ago

can anyone tell me the summary of the story dar ka bhoot in hindi fast​

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Answered by vanunagar13
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bhai ya behn ch name to mention krdo

Answered by manormadevirk
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Answer:

कहानी कुमराली गांव में जय सिंह नाम के एक जमींदार रहते थे, जिनके पांच बेटे और एक बेटी थी। इकलौती बेटी होने के कारण उसे सबसे ज़्यादा दुलार भी मिला। जमींदार की बेटी ज्योति, अपने पिता के इस दुलार की वज़ह से हठी और गुस्सैल स्वभाव की हो गई। इसके अलावा वो आलसी भी थी। एक दिन जमींदार की पत्नी ने उससे कहा, ‘बेटी तो पराया धन होती है, तुम इसे इतना सिर न चढ़ाओ। विवाह के बाद कैसे निभाएगी?’ ‘मैं इसके ससुराल दास-दासियां भिजवा दूंगा।’ जमींदार ने कहा। कुमराली के पास एक गांव में एक गरीब किसान रहता था। उसके बेटे का नाम था वीरभान। वीरभान के जन्म के समय ही उसकी माता की मृत्यु हो गई थी। वीरभान को किसान ने ही पाल-पोस कर बड़ा किया था। महामारी में किसान का बैल मर गया। दूसरा बैल खरीदने के लिए उसे जय सिंह से पैसे उधार लेने पड़े। वर्षा न होने से फसल भी न हुई। लगातार ब्याज से किसान का ऋणभार बढ़ता रहा। पिता-पुत्र इसी चिन्ता में डूबे रहते। समय के साथ Êामींदार की बेटी ज्योति भी बड़ी हो गई। Êामींदार को उसके विवाह की चिन्ता हुई। ज्योति से विवाह करने के लिए कोई भी युवक तैयार नहीं हो रहा था। तभी जमींदार को वीरभान का ख्याल आया। वीरभान सुन्दर होने के साथ बुद्धिमान भी है। इसके अलावा किसान उनका कर्Êादार भी है, सो इस रिश्ते के लिए वो मना भी नहीं करेगा। धन के प्रभाव से ज्योति को खुश भी रखेगा, यही सोच कर जमींदार ने किसान के यहां विवाह प्रस्ताव भेजा। न चाहते हुए भी वीरभान को यह शादी करनी पड़ी। ससुराल में भी ज्योति का व्यवहार नहीं बदला। पति के साथ ससुर को भी फटकार देती थी। किसान जमींदार के भय की वज़ह से कुछ न बोलता था। वीरभान गंभीर और स्वाभिमानी युवक था। कुछ दिन तक तो वो चुपचाप अपने पिता का ये अपमान देखता रहा, क्योंकि वो ज्योति की शिकायत करता भी तो किससे? एक दिन वीरभान ने अपने पिता के कान में कुछ कहा। पुत्र की बात सुन पिता ने भी स्वीकृति में गरदन हिला दी। अगले दिन वीरभान ने चुपके से सभी दास-दासियों को जमींदार के घर वापस भेज दिया। उसने कहा, ‘अपने घर की जिम्मेदारी स्वयं निभानी चाहिए।’ ज्योति जब सोकर उठी तो उसे बहुत Êाोर से भूख लगी। वीरभान ने कहा, ‘खाना बना लो।’ ज्योति रुआंसी होकर कहने लगी,‘इस कड़ाके की ठंड में मुझसे खाना नहीं बनेगा।’ ‘कोई बात नहीं, खाना मैं बना लूंगा। बस रसोई में तुम मेरी थोड़ी मदद कर देना।’ वीरभान बोला। अब वीरभान की बात मानने के अलावा ज्योति के पास कोई चारा नहीं था। दोनों ने मिलकर खाना बनाया। वीरभान खाने के बाद बोला, ‘मैं खेत पर जा रहा हूं काम करने, तुम घर में चौकस रहना।’ ‘चौकस क्यों?’ ज्योति ने पूछा। वीरभान ने बताया, ‘दिन मे प्रेत यहां से गुÊारते हैं और जो भी उनकी तरफ देखता है, वो उसे नोंच डालते हैं।’ ज्योति डर गई। ‘नहीं, नहीं! तब तो मैं यहां नहीं रहूंगी।’ एकाएक उसके मुंह से निकला। वीरभान ने पूछा, ‘तो तुम मेरे साथ खेत चलोगी?’ ज्योति बोली,‘मैं इस ठंड में बाहर नहीं जा सकती। एक बात बताओ ये प्रेत तुम्हारे सामने क्यों नहीं आते?’ वीरभान ने कहा,‘मेरे सामने भी आते हैं। पर जो उनकी तरफ देखता है, प्रेत उसी को चोट पहुंचाते हैं। यदि हम अपने काम में लगे रहंे, तो प्रेत सामने से गुÊार जाएंगे और हमें पता भी नहीं चलेगा। अच्छा, अब मैं जा रहा हूं।’ इतना कहकर वीरभान खेतों की ओर चल दिया। घर में खाली बैठी ज्योति को डर लगने लगा। उसने सोचा, ‘मुझे काम करते रहना चाहिए, इससे प्रेत की नÊार मुझ पर नहीं जाएगी।’ इच्छा के विपरीत वो काम करती रही। वह डर से खाली भी नहीं बैठ सकती थी। उसने मन में सोचा,‘वीरभान के आने से पहले क्यों न खाना ही बना लिया जाए।’ उस रात का खाना ज्योति ने बना लिया। वीरभान जब घर आया तो देखा, पूरा घर साफ होने के साथ-साथ रात का खाना भी बन गया है। ये देखकर वो बहुत ही खुश हुआ। ज्योति ने बताया,‘आज प्रेत नहीं आए, मैं काम में जुटी रही।’ ‘शायद वो बगल से निकल गए होंगे।’ वीरभान ने उत्तर दिया। इसके बाद तो ये दिनचर्या बन गई। किसान और वीरभान खेत में काम करते और ज्योति प्रेत के डर से घर का सारा काम करती। उसका स्वभाव बदल गया। दो महीने गुÊार गए। एक दिन जमींदार अपनी पत्नी के संग ज्योति से मिलने आए। ज्योति को देख वो दंग रह गए, वो भाग-भागकर घर का काम कर रही है। उसके शरीर में बिलकुल भी आलस नहीं था। माता-पिता को देखकर ज्योति उनके गले से लिपट गई। फिर बोली,‘पिता जी हमारे यहां कुछ काम करिए।’ उसने अपनी मां से भी यही कहा। उसे डर था कि प्रेत कहीं माता-पिता को नुकसान न पहुंचा दे। जमींदार को बेटी की बात माननी पड़ी, वो आंगन में रखे भूसे को घर में रखने लगे। शाम को जब वीरभान और उसके पिता खेत से लौटे, तो दोनों अचंभित खड़े देखते रह गए।। किसान ने जमींदार से क्षमा मांगी। जमींदार बोला, ‘मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। घर में घुसते ही ज्योति ने मुझे काम में लग जाने को कहा।’ वीरभान कुछ बोलता इससे पहले ही ज्योति बोल पड़ी,‘यदि आप काम नहीं करते तो प्रेत आपको हानि पहुंचा सकते थे।’ ‘प्रेत?’ जमींदार की पत्नी ने पूछा। ‘हां-हां, यहां से प्रेत गुÊारते हैं!’ ज्योति बोली। जमींदार ने वीरभान से कहा,‘मुझे अच्छा नहीं लगता, मेरी बेटी इतना काम करे, तुमने नौकरों को क्यों लौटाया?’ वीरभान ने उत्तर दिया,‘विवाह के बाद लड़की पर उसके पति का अधिकार होता है, पिता का नहीं। जब हम स्वयं इतनी मेहनत करते हैं, तो इसका भी कर्तव्य बनता है, कि ये भी हमारा साथ दे, और ऋण चुकाने में हमारी मदद करे।’ जमींदार बोला ‘पर वो

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