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"वोटों का महत्व "
in hindi plssss....
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इसका जिक्र करने का कोई मतलब नहीं है कि चुनावी लोकतंत्र में वोट का बहुत महत्व होता है। वोट सिर्फ उम्मीदवारों की जीत नहीं तय करते बल्कि लोकतंत्र का भविष्य भी तय करते हैं। इसलिए एक वोट में काफी वजन होता है। हालांकि, हाल के दिनों में वोट के अधिकार को लेकर काफी बहस चलती है। वोट को एक महत्वपूर्ण संपत्ति मानते हुए इसे हासिल करने के लिए कुछ उम्मीदवार मतदाताओं को धमकाने से भी नहीं बाज आते।
कुछ बौद्धिक नेताओं की ओर से यह सुझाव भी आया है कि इलैक्ट्राॅनिक वोटिंग मशीन में किसी को भी नहीं यानी नोटा की जगह किसी उम्मीदवार को वोट देना ज्यादा अच्छा है। नोटा उम्मीदवारों का अति मूल्यांकन करता हुआ दिखता है। नोटा के जरिए संवैधानिक शक्ति पर मतदाता अपनी नैतिक शक्ति का प्रयोग करते दिखते हैं। नोटा को एक तरह का नैतिक विरोध माना जाता है। जिसमें मतदाता यह संदेश देते हैं कि सारे उम्मीदवार बुरे हैं और इसके लिए मतदाता जिम्मेदार नहीं है।
लेकिन इस पूर्व पक्ष का उत्तर पक्ष भी है। नोटा पर वोट डालने वाला अपने नैतिक अधिकारों का इस्तेमाल करता है। लेकिन क्या यह उसके पूरे नियंत्रण में है कि वह नोट के परिणामों को प्रभावित कर सके? क्या सिर्फ उम्मीदवारों की नैतिक क्षमता नोटा पर वोट देने की एक वजह होनी चाहिए? मतदाताओं के सही राजनीतिक निर्णय को प्रभावित करने में नोटा के विकल्प की क्या भूमिका है?
यहां मतदाता नहीं बल्कि उम्मीदवार एक वोट का वजन या महत्व तय कर रहे हैं। यौन कर्मियों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का यह अनुभव है कि उम्मीदवार उनके पास वोट मांगने नहीं आते। उम्मीदवारों को लगता है कि ऐसा करने से जो फायदा होगा, उससे अधिक नैतिक लाभ इन लोगों के पास नहीं जाने से होगा। मतदाताओं को वोट देने का खोखला अधिकार तो है लेकिन यह अधिकार नहीं है कि उनके पास उम्मीदवार आएं। ऐसे में उन्हें लगता है कि उनके वोट का कोई मतलब ही नहीं है।
उम्र के हिसाब से लोगों को व्यस्क मानकर मतदान का अधिकार दे दिया जाता है। लेकिन सभी को एक वोट का अधिकार देकर लैंगिक, धार्मिक और अन्य भेदभावों के बावजूद बराबरी का संदेश दिया जाता है। इस नैतिक दृष्टि से वोट देने का अधिकार सार्वभौमिक हो जाता है।
इसका जिक्र करने का कोई मतलब नहीं है कि चुनावी लोकतंत्र में वोट का बहुत महत्व होता है। वोट सिर्फ उम्मीदवारों की जीत नहीं तय करते बल्कि लोकतंत्र का भविष्य भी तय करते हैं। इसलिए एक वोट में काफी वजन होता है। हालांकि, हाल के दिनों में वोट के अधिकार को लेकर काफी बहस चलती है। वोट को एक महत्वपूर्ण संपत्ति मानते हुए इसे हासिल करने के लिए कुछ उम्मीदवार मतदाताओं को धमकाने से भी नहीं बाज आते।
कुछ बौद्धिक नेताओं की ओर से यह सुझाव भी आया है कि इलैक्ट्राॅनिक वोटिंग मशीन में किसी को भी नहीं यानी नोटा की जगह किसी उम्मीदवार को वोट देना ज्यादा अच्छा है। नोटा उम्मीदवारों का अति मूल्यांकन करता हुआ दिखता है। नोटा के जरिए संवैधानिक शक्ति पर मतदाता अपनी नैतिक शक्ति का प्रयोग करते दिखते हैं। नोटा को एक तरह का नैतिक विरोध माना जाता है। जिसमें मतदाता यह संदेश देते हैं कि सारे उम्मीदवार बुरे हैं और इसके लिए मतदाता जिम्मेदार नहीं है।
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