can i get summary of poem manushyata in hindi immediately plz?
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मनुष्यता कविता में कवि मैथिलीशरण गुप्त ने सही अर्थों में मनुष्य किसे कहते हैं उसे बताया है। कभी कहते हैं कि मनुष्य को ज्ञान होना चाहिए कि वह मरने सील है इसलिए मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। उसे ऐसी मृत्यु को प्राप्त करना चाहिए जिसे बाद में सभी लोग उसे याद करें। कवि के अनुसार उदार व्यक्तियों की उदासीनता को पुस्तकों इतिहास में स्थान देकर उनका व्याख्यान किया जाता है उनका समस्त लोग आभार मानते हैं तथा पूजते हैं। जो व्यक्ति विश्व में एकता और अखंडता को फैलाता है उसकी कीर्ति का सारे संसार में गुणगान होता है। असल मनुष्य वह है जो दूसरों के लिए जिए और मरे। आज भी लोग उन लोगों की पूजा करते हैं जो पीड़ित व्यक्तियों की सहायता तथा उनके कष्ट को दूर करते हैं। कभी मनुष्य को कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नता पूर्वक हंसते खेलते चलो और रास्ते पर जो बाधाएं पड़ी हैं उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ो।
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इस कविता में कवि मनुष्यता का सही अर्थ समझाने का प्रयास कर रहा है। पहले भाग में कवि कहता है कि मृत्यु से नहीं डरना चाहिए क्योंकि मृत्यु तो निश्चित है पर हमें ऐसा कुछ करना चाहिए कि लोग हमें मृत्यु के बाद भी याद रखें। असली मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए जीना व मरना सीख ले। दूसरे भाग में कवि कहता है कि हमें उदार बनना चाहिए क्योंकि उदार मनुष्यों का हर जगह गुण गान होता है। मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों की चिंता करे। तीसरे भाग में कवि कहता है कि पुराणों में उन लोगों के बहुत उदाहरण हैं जिन्हे उनकी त्याग भाव के लिए आज भी याद किया जाता है। सच्चा मनुष्य वही है जो त्याग भाव जान ले। चौथे भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के मन में दया और करुणा का भाव होना चाहिए, मनुष्य वही कहलाता है जो दूसरों के लिए मरता और जीता है। पांचवें भाग में कवि कहना चाहता है कि यहाँ कोई अनाथ नहीं है क्योंकि हम सब उस एक ईश्वर की संतान हैं। हमें भेदभाव से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए।छठे भाग में कवि कहना चाहता है कि हमें दयालु बनना चाहिए क्योंकि दयालु और परोपकारी मनुष्यों का देवता भी स्वागत करते हैं। अतः हमें दूसरों का परोपकार व कल्याण करना चाहिए।सातवें भाग में कवि कहता है कि मनुष्यों के बाहरी कर्म अलग अलग हो परन्तु हमारे वेद साक्षी है की सभी की आत्मा एक है ,हम सब एक ही ईश्वर की संतान है अतः सभी मनुष्य भाई -बंधु हैं और मनुष्य वही है जो दुःख में दूसरे मनुष्यों के काम आये।अंतिम भाग में कवि कहना चाहता है कि विपत्ति और विघ्न को हटाते हुए मनुष्य को अपने चुने हुए रास्तों पर चलना चाहिए ,आपसी समझ को बनाये रखना चाहिए और भेदभाव को नहीं बढ़ाना चाहिए ऐसी सोच वाला मनुष्य ही अपना और दूसरों का कल्याण और उद्धार कर सकता है।.
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