can someone help me with the bhavarth of harivansh rai bachchan's poem ओ गगन के जगमगाते दीप!
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ओ गगन के जगमगाते दीप!
Explanation:
ओ गगन के जगमगाते दीप!
ये कविता श्री हरिवशराय राय बच्चन की है।
इस कविता में कवि आकाश के तारों को एक दीपक कि तरह समझ उनसे कहा रहा है।की है आकाश के जगमगाते दीप क्या तुम टूटे हृदय
में रोशनी भी सकते हो?
जो सपने कही खो गए हैं क्या तुम उं सपनो को वापस ला सकते हो।क्या तुम हृदय का दर्द केम केर सकते हो?
क्या तुम मन्न में शांति भी सकते हो?
क्या तुम उन आंखों को नींद दे सकते हो जिनके सपने टूट गए हैं?
दीन जीवन के दुलारे
खो गये जो स्वप्न सारे,
ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न मेरे स्वप्न पाते,
क्यों नहीं तुम खोज लाते
वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न वह भी मिल रही है,
है कठिन पाना-सही है,
नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
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