Hindi, asked by Hdrnaqviiii411, 1 year ago

can u give me five poems related with "prakriti sondrya in hindi "

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Answered by itsmeaysha
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here u r.....5 poems on nature's beauty..



1.बसंत का मौसम (इंदर भोले नाथ)

    है महका हुआ गुलाब

खिला हुआ कंवल है,

हर दिल मे है उमंगे

हर लब पे ग़ज़ल है,

ठंडी-शीतल बहे ब्यार

मौसम गया बदल है,

हर डाल ओढ़ा नई चादर

हर कली गई मचल है,

प्रकृति भी हर्षित हुआ जो

हुआ बसंत का आगमन है,

चूजों ने भरी उड़ान जो

गये पर नये निकल है,

है हर गाँव मे कौतूहल

हर दिल गया मचल है,

चखेंगे स्वाद नये अनाज का

पक गये जो फसल है,

त्यौहारों का है मौसम

शादियों का अब लगन है,

लिए पिया मिलन की आस

सज रही “दुल्हन” है,

है महका हुआ गुलाब

खिला हुआ कंवल है…!!




2.मान लेना वसंत आ गया (डी. के. निवातियाँ)

बागो में जब बहार आने लगे

कोयल अपना गीत सुनाने लगे

कलियों में निखार छाने लगे

भँवरे जब उन पर मंडराने लगे

मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!

खेतो में फसल पकने लगे

खेत खलिहान लहलाने लगे

डाली पे फूल मुस्काने लगे

चारो और खुशबु फैलाने लगे

मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!

आमो पे बौर जब आने लगे

पुष्प मधु से भर जाने लगे

भीनी भीनी सुगंध आने लगे

तितलियाँ उनपे मंडराने लगे

मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!

सरसो पे पीले पुष्प दिखने लगे

वृक्षों में नई कोंपले खिलने लगे

प्रकृति सौंदर्य छटा बिखरने लगे

वायु भी सुहानी जब बहने लगे

मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!

धूप जब मीठी लगने लगे

सर्दी कुछ कम लगने लगे

मौसम में बहार आने लगे

ऋतु दिल को लुभाने लगे

मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!

चाँद भी जब खिड़की से झाकने लगे

चुनरी सितारों की झिलमिलाने लगे

योवन जब फाग गीत गुनगुनाने लगे

चेहरों पर रंग अबीर गुलाल छाने लगे

मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!



3.काली घटi      

काली घटा छाई है

लेकर साथ अपने यह

ढेर सारी खुशियां लायी है

ठंडी ठंडी सी हव यह

बहती कहती चली आ रही है

काली घटा छाई है

कोई आज बरसों बाद खुश हुआ

तो कोई आज खुसी से पकवान बना रहा

बच्चों की टोली यह

कभी छत तो कभी गलियों में

किलकारियां सीटी लगा रहे

काली घटा छाई है

जो गिरी धरती पर पहली बूँद

देख ईसको किसान मुस्कराया

संग जग भी झूम रहा

जब चली हवाएँ और तेज

आंधी का यह रूप ले रही

लगता ऐसा कोई क्रांति अब सुरु हो रही

.

छुपा जो झूट अमीरों का

कहीं गली में गढ़ा तो कहीं

बड़ी बड़ी ईमारत यूँ ड़ह रही

अंकुर जो भूमि में सोये हुए थे

महसूस इस वातावरण को

वो भी अब फूटने लगे

देख बगीचे का माली यह

खुसी से झूम रहा

और कहता काली घटा छाई है

साथ अपने यह ढेर सारी खुशियां लायी है


4.कुदरत

हे ईस्वर तेरी बनाई यह धरती , कितनी ही सुन्दर

नए – नए और तरह – तरह के

एक नही कितने ही अनेक रंग !

कोई गुलाबी कहता ,

तो कोई बैंगनी , तो कोई लाल

तपती गर्मी मैं

हे ईस्वर , तुम्हारा चन्दन जैसे व्रिक्स

सीतल हवा बहाते

खुशी के त्यौहार पर

पूजा के वक़्त पर

हे ईस्वर , तुम्हारा पीपल ही

तुम्हारा रूप बनता

तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी

नील अम्बर को सुनेहरा बनाते

तेरे चौपाये किसान के साथी बनते

हे ईस्वर तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी



5.मौसम बसंत का

लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का

शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का

गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी

फूलों की महक हर दिशा में फ़ैल जाएगी

पेड़ों में नई पत्तियाँ इठला के फूटेंगी

प्रेम की खातिर सभी सीमाएं टूटेंगी

सरसों के पीले खेत ऐसे लहलहाएंगे

सुख के पल जैसे अब कहीं ना जाएंगे

आकाश में उड़ती हुई पतंग ये कहे

डोरी से मेरा मेल है आदि अनंत का

लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का

शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का

ज्ञान की देवी को भी मौसम है ये पसंद

वातवरण में गूंजते है उनकी स्तुति के छंद

स्वर गूंजता है जब मधुर वीणा की तान का

भाग्य ही खुल जाता है हर इक इंसान का

माता के श्वेत वस्त्र यही तो कामना करें

विश्व में इस ऋतु के जैसी सुख शांति रहे

जिसपे भी हो जाए माँ सरस्वती की कृपा

चेहरे पे ओज आ जाता है जैसे एक संत का

लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का

शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का


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