Hindi, asked by kumudinikothikar, 1 day ago

can u plz help me write the कहाणी​

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Answered by dradhu750
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रोज की तरह आज की सुबह भी बड़ी निराली थी,

अब तो सूरज ने भी करवट बदल डाली थी,

और हमेशा की तरह उनकी भी यही तैयारी थी,

कि अगले ही कुछ सालों में जिन्दगी बदलने की बारी थी।

दिलों में जोश और अथक जुनून उनमे भरा पड़ा था,

और अगले ही पल उनमें से हर कोई कोचिंग में खड़ा था,

उस अनभिज्ञ बाल मन को क्या पता था,

कि अगले ही पल तूफान भी उनके द्वार पर खड़ा था।

लेकिन जैसे-तैसे क्लास की हो गयी तैयारी थी,

उन्हें क्या पता उनकी किस्मत यहाँ आके हारी थी,

वो तो बस धुन के पक्के लगे थे भविष्य बनाने मे,

उनका भी तो लक्ष्य था हर सीढ़ी पर आगे आने में।

जैसे ही मिली सूचना, उस अनहोनी के होने की,

मच गया था कोहराम,पूरे भवन और जीने में,

ना कोई फरिश्ता था आगे,अब उनको बचाने में,

लेकिन फिर जद्दोजहद थी, उनकी जान बचाने में।

कॉपी पेन और भविष्य, अब पीछे छूट चुके थे,

सब लोगों के पैर फूल गये औऱ पसीने छूट चुके थे,

अब तो बस एक ही ख्याल, दिल और दिमागों में था,

विश्वास अब बन चुका था, जो खग औऱ विहगों में था।

यही सोचकर सबने ऊपर से छलांग लगा दी थी,

लेकिन प्रशासन की तैयारी में बड़ी खराबी थीं,

न कोई तन्त्र अब तैयार था नोजवानों को बचाने में,

अब तो बस खुद की कोशिश थी बच जाने में।

पूरी भीड़ में बस वो ही एक माँ का लाल निराला था,

जो आठ जानें बचा के भी न रूकने वाला था,

वो सिँह स्वरूप केतन ही, मानो बच्चों का रखवाला था,

रक्त रंजित शर्ट थीं उसकी, जैसे वही सबका चाहने वाला था।

बाकी खड़ी भीड़ की आत्मा मानो मर चुकी थी,

उनको देख के तो मानो,धरती माँ भी अब रो चुकी थीं,

कुछ निहायती तो बस वीडियो बना रहे थे,

और एक-एक करके सारे बच्चे नीचे गिरे जा रहे थे।

फिर भी उनमें से किसी की मानवता ने ना धिक्कारा था,

गिरने वाला एक-एक बच्चा अब घायल और बिचारा था,

कुछ हो गए घायल और कुछ ने जान गँवाई थी,

ऐसे निर्भयी बच्चों पर तो भारत माँ भी गर्व से भर आयी थी।

लेकिन फिर भी न बच पाए थे वो लाल,

और प्रशासन भी ना कर पाया वहाँ कोई कमाल,

उज्ज्वल भविष्य के सपने संजोये वो अब चले गए,

कल को बेहतर करने की कोशिश में आज ही अस्त हो गए।

उन मात- पिता के दिल पर अब क्या गुजरी होगी,

उनकी ममता भी अब फुट- फूटकर रोई होगी,

क्या गारंटी है किसी और के साथ आगे न होगा ऐसा,

इसलिए प्रण करो कि सुधारे व्यवस्था के इस ढांचे को,

ताकि न हो आहत कोई आगे किसी के खोने को।

क्योंकि जो गए वो भी किसी की आँखों के तारे थे,

किसी को तो वो भी जान से ज्यादा कहीं प्यारे थे।

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