Hindi, asked by koranisansha3989, 1 year ago

can u plz make me understand the meanings of all the vakhs?

Answers

Answered by Sujay2003
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वाख-१
रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव
जाने कब सुन मेरी पुकार,करें देव भवसागर पार,
पानी टपके कच्चे सकोरे ,व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे,
जी में उठती रह-रह हूक,घर जाने की चाह है घेरे।

व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने कहा है कि प्रभु-मिलन की आस में मैं अपने जीवन रूपी नाव को साँसों की डोरी (कच्ची रस्सी) के सहारे आगे बढ़ा रही हूँ। प्रभु न जाने कब मेरी पुकार सुनेंगे और मुझे इस भवसागर से पार करेंगे। मिट्टी से बने इस शरीर रूपी कच्चे सकोरे से निरंतर पानी टपक रहा है अर्थात् एक-एक दिन करके उम्र घटते जा रही है। प्रभु-मिलन के लिए किये गए अब तक के सारे प्रयास व्यर्थ हो चुके हैं। मेरी आत्मा परमात्मा से मिलने को व्याकुल हो रही है। बार - बार असफलता के कारण मेरे मन में ग्लानि हो है।

वाख-२
खा खा कर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी,
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बन्द द्वार की।
व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने हृदय को उदार , अहंकार-मुक्त एवम् समानता के भाव से परिपूर्ण बनाने का संदेश देते हुए कहा है कि केवल और केवल भोग-उपभोग में लगे रहने से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता । इससे व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है। यदि भोग का सर्वथा त्याग कर दिया जाय तो मन में त्यागी होने का अहंकार पैदा हो जाता है,यह स्थिति और भी भयानक होती है,क्योंकि अहंकार विनाश का कारण है। इसलिए कवयित्री ने बीच का रास्ता सुझाते हुए कहा है कि हमें भोग करना चाहिए किन्तु न के बराबर और त्याग भी अवश्य करना चाहिए, किन्तु सीमा से परे नहीं। तात्पर्य यह कि हमें त्यागपूर्वक भोग करना चाहिए अर्थात् भोग और त्याग के बीच समानता रखनी चाहिए। इस समानता के कारण हमारे अन्दर समभाव उत्पन्न होगा जिससे हमारे हृदय में उदारता का आविर्भाव होगा।जैसे ही हमारे अन्दर उदारता आएगी, हमारे अन्दर के स्वार्थ,अहंकार एवं हार्दिक संकीर्णता स्वाहा हो जाएगी । हमारा हृदय अपने - पराए के भेद से उपर उठ जाएगा और समस्त चराचर के लिए हमारे हृदय का द्वार खुल जाएगा।


वाख-३
आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह,
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई
माँझी को दूँ क्या उतराई ।
व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में ललद्यद के मन का पश्चाताप उजागर हुआ है। उन्होंने अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए सामान्य भक्ति के मार्ग को न अपनाकर हठयोग का सहारा लिया। अर्थात् भक्ति रुपी सीढ़ी पर न चढ़ कर सुषुम्ना नाड़ी (कुंडलिनी) को जागृत कर अपने और प्रभु के बीच हठयोग के द्वारा सीधे तौर पर सेतु (पुल) बनाना चाहती थीं।परन्तु अपने इस प्रयास में वे सदैव असफल होते रहीं। इसी प्रयास में धीरे - धीरे उनकी उम्र बीत गई।जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक उनके जीवन की संध्या हो चुकी थी अर्थात् अब मृत्यु की घड़ी निकट आ चुकी थी। अब कुछ और करने का समय शेष नहीं था ।जब उन्होंने अपने जीवन का लेखा-जोखा किया तो पाया कि उनके पास तो कुछ भी नहीं है,उनकी हालत तो किसी कंगाल की तरह है।अब तो परमात्मा से मिलने के लिए भवसागर पार करके ही जाना होगा । भवसागर पार कराने के लिए प्रभु जब उससे खेवाई या पार-उतराई के रूप में पुण्य कर्म माँगेंगे तो वह क्या देगी? उसने तो हठयोग में ही अपनी पूरी ज़िन्दगी बीता दी।अपनी अवस्था पर उन्हें भारी अफ़सोस हो रहा है।वे पछता रही हैं।पर कहते हैं न कि--
“अब पछताए होत का , जब चिड़िया चुग गई खेत।”


वाख-४
थल थल में बसता है शिव ही
भेद न कर क्या हिन्दू मुसलमाँ,
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
यही है साहिब से पहचान ।

व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में ललद्यद ने ईश्वर को सर्वव्यापी कहते हुए समस्त चराचर में उसका वास बताया है।ललद्यद के अनुसार सृष्टि के कण - कण में प्रभु का वास है और वे हम सबके अन्दर हैं। अत: हमें जाति,धर्म,अमीर-गरीब,ऊँच-नीच या हिन्दू-मुसलमान जैसे भेद-भाव नहीं करना चाहिए। वे कहती हैं कि जिसे आत्मा का ज्ञान हो गया उसे परमात्मा का ज्ञान स्वत: हो जाता है।उनके अनुसार आत्मज्ञानी परमात्मा से साक्षात्कार कर लेता है।आत्मा में ही परमात्मा का वास है अत: स्वयं को जानना ही ईश्वर को जानना है।
Answered by BrainlyQueen01
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आई सीधी राह से, गई न सीधी राह !
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !
जेब टटोली, कौड़ी ना पाई !
मांझी को दूँ क्या उतराई ?

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इस वाक्य में कवयित्री हठ योग की साधना का उल्लेख करती है । साधना के द्वारा कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है । देखते - देखते जीवन समाप्त हो जायेगा । तब पता चलेगा कि मेरे पास प्रेमी रुपी झाँकी की एक फूटी कौड़ी भी नहीं है । कवयित्री कहती हैं कि सीधे मार्ग से मुझे जो जीवन प्राप्त हुई है, मैं उससे मुक्ति पाना चाहती हूँ । परंतु मेरे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं है जिसने मुझे मार्ग बताया । अतः कवयित्री कहती हैं कि प्रेम और मुक्ति के सहारे ईश्वर तक पहुँचा जा सकता हैं , केवल ज्ञान और योग से नहीं ।
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