can u say the summary of the lesson hamid khan ?
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the narrator is going to Pakistan to see some thing . the place. when he got off, he was very hungry but as he saw all around there were no hotels. but as he reached a street he sees a hotel and goes to the hotel. there is a middle aged person making chapatis and was looking at the narrator astonishingly. then the narrator asked for some food . and he was served with some chapatis by the middle aged person and also some side dish by a small boy. while he was eating the middle aged man asked if he was a Hindu . the narrator said yes. the person was not able to believe . then he asked where he was from .then the narrator says that if the people wanted some tasty chapatis they went to a Muslim hotel . the man said that here the Hindus and Muslims were not together, the Hindus saw Muslims as minorities. then the narrator asked for how much money he was to pay. the man said that the narrator was his guest and did not want to get money from a guest. then the narrator went on his path. in the first they are telling that in the newspaper the narrator read that in Pakistan the houses were burning due to the fight and the narrator prayed that nothing should happen to Hamid Khan and his hotel.
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लेखक को एक दिन समाचार पत्र में तक्षशिला (पाकिस्तान) में आगजनी की खबर पढ़ते हैं जिससे लेखक को हामिद खाँ नाम के व्यक्ति की याद आ जाती है जो तक्षशिला भ्रमण के दौरान लेखक को मिला था। लेखक उसके लिए ईश्वर से हिफ़ाज़त की दुआ माँगते हैं।
दो साल पहले लेखक तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गए थे। कड़ी धुप और भूख-प्यास के कारण उनका बुरा हाल हो रहा था। वे रेलवे स्टेशन से करीब पौने मील दूर बसे एक गाँव की और चल पड़े। उन्हें वहाँ तंग बाज़ार, धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें दिखीं। होटल का कहीं नामोनिशान ना था। कही-कहीं सड़े हुए चमड़े की बदबू आ रही थी।
अचानक लेखक को एक दूकान दिखी जहाँ चपातियाँ सेंकी जा रहीं थीं। लेखक ने मुस्कराहट के साथ उस दूकान में प्रवेश किया। वहाँ एक अधेड़ उम्र का पठान चपातियाँ बना रहा था। लेखक ने खाने के बारे में उससे पूछा। दुकानदार ने लेखक को बेंच पर बैठने के लिए कहा।
दुकानदार ने चपातियाँ बनाते हुए लेखक से पूछा कि वह कहाँ के रहने वाले हैं? लेखक ने उसे बताया कि वह हिंदुस्तान के दक्षिणी छोर पर मद्रास के आगे मालबार क्षेत्र का रहने वाला है। दुकानदार ने पूछा की क्या वे हिन्दू हैं? लेखक ने हामी भरी। इसपर दुकानदार ने पूछा कि क्या वे मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे? इसपर लेखक ने हामिद (दुकानदार) को बताया कि उनके यहाँ अगर किसी बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बिना कुछ सोचे मुसलमानी होटलों में जाया करते हैं।
हामिद लेखक की बात पर विश्वास नहीं कर पाया। लेखक ने उसे बताया कि उनके यहाँ हिन्दू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है और उनके बीच न के बराबर होते हैं। हामिद इन बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर बोला कि काश वः भी यह सब देख पाता।
हामिद ने लेखक का स्वागत करते हुए खाना खिलाया। लेखक ने खाना खाकर हामिद को पैसे दिए परतु उसने लेने से इनकार कर दिया। बहुत करने पर हामिद ने पैसे लिए और वापस देते हुए कहा कि मैंने पैसे ले लिए , मगर मैं चाहता हूँ आप इस पैसे से हिंदुस्तान जाकर किसी मुसलमानी होटल में पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद को याद करें। लेखक वहाँ से तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चले गए। उसके बाद लेखक ने हामिद को कभी नहीं देखा।
लेखक आज समाचार पत्र पढ़कर हामिद और उसकी दूकान को सांप्रदायिक दंगों से बच जाने की प्रार्थना क्र रहे थे।
दो साल पहले लेखक तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गए थे। कड़ी धुप और भूख-प्यास के कारण उनका बुरा हाल हो रहा था। वे रेलवे स्टेशन से करीब पौने मील दूर बसे एक गाँव की और चल पड़े। उन्हें वहाँ तंग बाज़ार, धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें दिखीं। होटल का कहीं नामोनिशान ना था। कही-कहीं सड़े हुए चमड़े की बदबू आ रही थी।
अचानक लेखक को एक दूकान दिखी जहाँ चपातियाँ सेंकी जा रहीं थीं। लेखक ने मुस्कराहट के साथ उस दूकान में प्रवेश किया। वहाँ एक अधेड़ उम्र का पठान चपातियाँ बना रहा था। लेखक ने खाने के बारे में उससे पूछा। दुकानदार ने लेखक को बेंच पर बैठने के लिए कहा।
दुकानदार ने चपातियाँ बनाते हुए लेखक से पूछा कि वह कहाँ के रहने वाले हैं? लेखक ने उसे बताया कि वह हिंदुस्तान के दक्षिणी छोर पर मद्रास के आगे मालबार क्षेत्र का रहने वाला है। दुकानदार ने पूछा की क्या वे हिन्दू हैं? लेखक ने हामी भरी। इसपर दुकानदार ने पूछा कि क्या वे मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे? इसपर लेखक ने हामिद (दुकानदार) को बताया कि उनके यहाँ अगर किसी बढ़िया चाय पीनी हो या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बिना कुछ सोचे मुसलमानी होटलों में जाया करते हैं।
हामिद लेखक की बात पर विश्वास नहीं कर पाया। लेखक ने उसे बताया कि उनके यहाँ हिन्दू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है और उनके बीच न के बराबर होते हैं। हामिद इन बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर बोला कि काश वः भी यह सब देख पाता।
हामिद ने लेखक का स्वागत करते हुए खाना खिलाया। लेखक ने खाना खाकर हामिद को पैसे दिए परतु उसने लेने से इनकार कर दिया। बहुत करने पर हामिद ने पैसे लिए और वापस देते हुए कहा कि मैंने पैसे ले लिए , मगर मैं चाहता हूँ आप इस पैसे से हिंदुस्तान जाकर किसी मुसलमानी होटल में पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद को याद करें। लेखक वहाँ से तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चले गए। उसके बाद लेखक ने हामिद को कभी नहीं देखा।
लेखक आज समाचार पत्र पढ़कर हामिद और उसकी दूकान को सांप्रदायिक दंगों से बच जाने की प्रार्थना क्र रहे थे।
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