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असम चाय के बागानों को लेकर मेरे मन में एक बहुत ही औपनिवेशिक छवि बसी हुई है। अंग्रेजों द्वारा संचालित चाय के उद्यान जिनमें बड़े-बड़े बंगलों में वे रहा करते थे। तथा वहीं पर स्थित चाय के उत्पादन और संकुलन के केंद्र और अपनी पीठ पर बांस की टोकरियाँ लादे इन बागानों से चाय की पत्तियाँ बीनते हुए श्रमिकों के समूह।
असम चाय के बागानों को लेकर मेरे मन में एक बहुत ही औपनिवेशिक छवि बसी हुई है। अंग्रेजों द्वारा संचालित चाय के उद्यान जिनमें बड़े-बड़े बंगलों में वे रहा करते थे। तथा वहीं पर स्थित चाय के उत्पादन और संकुलन के केंद्र और अपनी पीठ पर बांस की टोकरियाँ लादे इन बागानों से चाय की पत्तियाँ बीनते हुए श्रमिकों के समूह।लोग हमेशा से चाय के उद्यान का स्वामी होने के आकांक्षी रहे हैं। मेरे अनुमान से यह आज भी चलता आ रहा है, यद्यपि अब अधिकतर उद्यान व्यक्तिगत स्वामित्व के बजाय निगमों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। भारत के उत्तर पूर्वीय भागों में, विशेष कर पूर्वीय असम और दार्जिलिंग के आस-पास के इलाके में विश्व की 20% से भी अधिक चाय पत्ती का उत्पादन होता है। ऐसे में इन इलाकों को विश्व के टिस्पून्स या विश्व का चाय का चम्मच कहना गलत नहीं होगा।
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