can you give me a 2 minute essay on swayam par vishwas
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संस्कूत में कहा गया है कि मत ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है ‘मन एंव मनुष्याणां कारण बंधा न मोक्ष्यों।’ मन की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन ही व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से बांधता है, मन ही उसे अन बंधनों से छुटकारा दिलाता है। मन ही मन उसे अनेक प्रकार की बुराईयों की ओर प्रवृत्त करता है, तो मन ही उसे अज्ञान से ज्ञान की ओर अंधकार से प्रकार की ओर ले जाता है। भाव यह है कि मन चाहे तो क्या नहीं कर सकता। इसलिए एक विचारक ने कहा है-
संस्कूत में कहा गया है कि मत ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है ‘मन एंव मनुष्याणां कारण बंधा न मोक्ष्यों।’ मन की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन ही व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से बांधता है, मन ही उसे अन बंधनों से छुटकारा दिलाता है। मन ही मन उसे अनेक प्रकार की बुराईयों की ओर प्रवृत्त करता है, तो मन ही उसे अज्ञान से ज्ञान की ओर अंधकार से प्रकार की ओर ले जाता है। भाव यह है कि मन चाहे तो क्या नहीं कर सकता। इसलिए एक विचारक ने कहा है-‘जिसने मन को जीत लिया
संस्कूत में कहा गया है कि मत ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है ‘मन एंव मनुष्याणां कारण बंधा न मोक्ष्यों।’ मन की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन ही व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से बांधता है, मन ही उसे अन बंधनों से छुटकारा दिलाता है। मन ही मन उसे अनेक प्रकार की बुराईयों की ओर प्रवृत्त करता है, तो मन ही उसे अज्ञान से ज्ञान की ओर अंधकार से प्रकार की ओर ले जाता है। भाव यह है कि मन चाहे तो क्या नहीं कर सकता। इसलिए एक विचारक ने कहा है-‘जिसने मन को जीत लियाबस उसने जीत लिया संसार’
संस्कूत में कहा गया है कि मत ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है ‘मन एंव मनुष्याणां कारण बंधा न मोक्ष्यों।’ मन की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन ही व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से बांधता है, मन ही उसे अन बंधनों से छुटकारा दिलाता है। मन ही मन उसे अनेक प्रकार की बुराईयों की ओर प्रवृत्त करता है, तो मन ही उसे अज्ञान से ज्ञान की ओर अंधकार से प्रकार की ओर ले जाता है। भाव यह है कि मन चाहे तो क्या नहीं कर सकता। इसलिए एक विचारक ने कहा है-‘जिसने मन को जीत लियाबस उसने जीत लिया संसार’सृष्टि के अन्य चराचरों का केवल कानव के पास ही मन की शक्ति है। अन्य प्राणियों के पास नहीं। मन के कारण ही इच्छा-अनिच्छा, संकल्प-विकल्प, अपेक्षा-उपेक्षा आदि भावनांए जन्म लेती हैं। मन में मनन करने की क्षमता है इसी कारण मनुष्य को चिंतनशील प्राणी कहा गया है। संकल्पशील रहने पर व्यक्ति कठित से कठिन अवस्था में भी पराजय स्वीकार नहीं करता, तो इसके टूट जाने पर छोटी विपत्ति में भी निराश होकर बैठ जाता है। इसलिए कहा हैl
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Hope it will help you Mark me as Brainliest
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