can you write a hindi poem based on the following words varsha , baadal . nadi, sagar, chaand please help me
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कल कल करती नदी की धारा.
बही जा रही बढ़ी जा रही.
प्रगति पथ पर चढ़ी जा रही.
सबको जल ये दिये जा रही.
पथ न कोई रोक सके.
और न कोई टोक सके.
चट्टानों से टकराती है,
तूफानों से भीड़ जाती है.
रूकना इसे कब भाता है.
थकना इसे नहीं आता है.
सोद्देश्य स्व-पथ पर पल पल
बस आगे बढ़ती जाती है.
कल -कल करती जल की धारा.
जौहर अपना दिखलाती है
बही जा रही बढ़ी जा रही.
प्रगति पथ पर चढ़ी जा रही.
सबको जल ये दिये जा रही.
पथ न कोई रोक सके.
और न कोई टोक सके.
चट्टानों से टकराती है,
तूफानों से भीड़ जाती है.
रूकना इसे कब भाता है.
थकना इसे नहीं आता है.
सोद्देश्य स्व-पथ पर पल पल
बस आगे बढ़ती जाती है.
कल -कल करती जल की धारा.
जौहर अपना दिखलाती है
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ।
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी,
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है ।
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे ।
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ।
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी,
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है ।
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे ।
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।
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