(चरीत्र ही सबसे बडा़ धन है ) अनुछेद लेखन
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चरित्र का निखार। मौजूदा
दौर में व्यक्ति जल्द से जल्द सुख-
सुविधाओं की प्राप्ति की लालसा के कारण
अनेक समस्याआें और परेशानियों से जूझ
रहा है। ये समस्याएं लोगों के चरित्र को प्रभावित
करती हैं। ऐसे में अधिकतर व्यक्ति समस्याओं और
परेशानियों के दबाव में अपने चरित्र को दांव पर लगा
देते हैं और अपने कदमों को गलत मार्ग पर मोड़ लेते हैं।
अनुचित व गलत मार्ग सहज-सीधा नजर आता है, जो सभी
को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मार्ग ऐसा होता है जि-
समें व्यक्ति को अधिक मेहनत व प्रयास करने की आवश्यकता
नहीं होती, लेकिन वह व्यक्ति के सबसे कीमती गुणों व चरित्र पर
प्रश्नचिन्ह लगा देता है।
जिंदगी में समस्याओं
और परेशानियों का भी एक अनूठा
महत्व है। यदि व्यक्ति साहस, धैर्य और
ईमानदारी से परेशानियों का मुकाबला करे
तो वह न सिर्फ अपनी परेशानियों को दूर भगाता
है, बल्कि सफलता को भी अपने जीवन का एक अंग
बना लेता है। ऐसे में उसका चरित्र और अधिक निखर
उठता है।
जिस प्रकार सोना आग
में तप कर और अधिक निखरता है,
उसी तरह चरित्र भी कठिन परिस्थितियों
और संघर्ष का सामना करते हुए अधिक निखर
आता है। सामान्य परिस्थितियों में तो सभी अपने चरित्र
को संभाल कर रखने का दावा करते हैं, लेकिन जब हालात
विपरीत हों, उस समय अपनी सूझबूझ, दया और शालीनता को
बरकरार रखना अधिक महत्वपूर्ण होता है।
एक रूसी कहावत है कि हथौड़ा
कांच को तोड़ देता है, पर लोहे का कुछ नहीं
बिगाड़ता। इसका तात्पर्य है कि सुदृढ़ और सद्कर्मो
पर चलने वाला व्यक्ति अपने चरित्र के साथ कभी सम-
झौता नहीं करता। कहते हैं कि योग्यता की वजह से सफल-
ता मिलती है और वह चरित्र ही है, जो सफलता को संभालता है।
जो सफल व्यक्ति अपने चरित्र को नहीं निखारते सफलता भी उनके
पास ज्यादा देर तक नहीं टिकती। ऐसे लोग शीघ्र ही गुमनामियों के
अंधेरों में गुम हो जाते हैं।
आध्यात्मिक रुझान से
न सिर्फ व्यक्ति का चरित्र सुदृढ़ होता
है, बल्कि उसके अंदर धैर्य, ईमानदारी,
परोपकार आदि सद्गुणों का भी विकास होता
है। वर्तमान समय में चरित्र का मजबूत होना
अत्यंत आवश्यक है। चरित्र को बचपन से ही
मजबूत बनाया जाए तो व्यक्ति संस्कारों और
अध्यात्म की छांव में बड़ा होकर समाज व देश
का नाम रोशन करता है। यदि चरित्र सही नहीं है,
तो धन-दौलत भी व्यर्थ है।