Hindi, asked by sonukumar3339, 1 year ago

चरन-कमल बंद हरि राइ।
जाकी कृपा पर गिरि लंघे, अंधे को सब कुछ दरसाइ।।
बरी सुने, गंग पुनि बाले, रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंद तिहिं पाई।।।।​

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Answered by aishwarypandey
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भावार्थ :-- जिस पर श्रीहरि की कृपा हो जाती है, उसके लिए असंभव भी संभव हो जाता है। लूला-लंगड़ा मनुष्य पर्वत को भी लांघ जाता है। अंधे को गुप्त और प्रकट सबकुछ देखने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। बहरा सुनने लगता है। गूंगा बोलने लगता है कंगाल राज-छत्र धारण कर लेता हे। ऐसे करूणामय प्रभु की पद-वन्दना कौन अभागा न करेगा।

शब्दार्थ :-राई= राजा। पंगु = लंगड़ा। लघै =लांघ जाता है, पार कर जाता है। मूक =गूंगा। रंक =निर्धन, गरीब, कंगाल। छत्र धराई = राज-छत्र धारण करके। तेहि = तिनके। पाई =चरण।

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