Cashless arthvyavastha aur bharathiya banking vyavastha
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कैशलेस देश को अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए बड़े प्रयासों के .... वैश्विक मंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी 'नकद व्यवस्था' ...
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एक प्रचलित कहावत है ‘जिसकी जेब नोटों से भरी हो, वही ध्नी होता है’ परंतु सूचना तकनीक इस कहावत को मिथ्या साबित करने के काफी करीब पहुंच चुकी है। अब लोग रूपया या डाॅलर के स्थान पर स्मार्ट कार्डों से अपने बटुए को भरना चाहते हैं। भुगतान या विनिमय की प्रणाली वस्तु विनिमय से आरंभ होकर आहत सिक्के, सिक्के, हुंडी, कागजी मुद्रा तथा विटक्वाइन जैसी डिजिटल या आभासी मुद्रा तक पहुंच चुकी है। यदि अर्थव्यवस्था उन्नत हो, तो समाज भी उन्नत होता है। जिस देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, वह देश एवं समाज, ज्ञान एवं तकनीक में भी उन्नत होता है। यह बात नार्डिक देशों नाॅर्वे, डेनमार्क, आइसलैंड एवं स्वीडन के संदर्भ में सटीक प्रतीत होती है। इन देशों मे तकनीक के प्रति अत्यध्कि लगाव है इसलिए तकनीक के प्रत्येक क्षेत्रा में नए अनुप्रयोगों को वहां की जनता हाथों-हाथ लेती है।
स्वीडिश बैंकों में सूचना तकनीक का पहले से ही बड़े पैमाने पर प्रयोग होता रहा है, कई स्वीडिश बैंकों की सभी शाखाएं शत-प्रतिशत डिजिटल हैं। इस वजह से स्वीडिश मुद्रा क्रोन का प्रचलन बाजार में न्यूनतम हो गया है। स्वीडिश क्रोन केवल तीन-चार प्रतिशत की लेन-देन में प्रयुक्त होती है जबकि 96-97 प्रतिशत भुगतान बैंकिंग के इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों से हो रहा है। स्मार्ट फोन के आ जाने से मोबाइल पेमेंट सिस्टम सर्व सुलभ हो गया है। वैश्वीकरण के दौर में किसी भी ज्ञान या तकनीक का प्रसार शीघ्रता से विश्व भर में हो जाता है। इसलिए कैशलेस अर्थव्यवस्था को भी सभी देशों में स्वीकृति मिल रही है। भारत में भी स्वदेश रूपे कार्ड से भुगतान हो रहा है। यूं तो अर्थशास्त्रा बेहद गूढ़ विषय माना जाता रहा है, किन्तु हालिया नोटबंदी से उपजे हालातों ने तमाम नागरिकों को अर्थशास्त्रा की कई शब्दावलियों से परिचित कराया है।
‘कैशलेस इकाॅनमी’ इन दिनों खूब सुना जा रहा है, जिसका सीध मतलब यही है कि ‘टेक्नोलाॅजी’ की सहायता से आप प्रत्येक लेन देन करें, जिसमें कैश के आदान-प्रदान की कोई आवश्यकता नहीं। क्रेडिट/डेबिट कार्ड के साथ-साथ इन्टरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैकिंग, डिजिटल वाॅलेट जैसी सुविधओं को इसमें गिनाया जा सकता है, हालाँकि, तमाम प्रचार के बावजूद देश की आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी कैश पर ही डिपेंडेंट है। लोगों के पास क्रेडिट/डेबिट कार्ड जरूर हैं, किन्तु उसका प्रयोग लोग एटीएम से पैसा निकालने के लिए ही ज्यादा करते हैं, सीधी खरीददारी के लिए कम! इसके पीछे जो मुख्य कारण हैं, उनमें हर जगह प्लास्टिक मनी लेने की सुविध नहीं होना और डेबिट/क्रेडिट कार्ड से जुड़ी असुरक्षा की भावना है। आखिर, डेबिट/क्रेडिट की तमाम खबरें यूं ही तो नहीं आती हैं न! चूंकि, भारत अब इस दिशा में कदम बढ़ा चुका है। आजाद भारत के इतिहास में आज का वक्त ऐसा बिरला है कि हर नागरिक उन बातों को सुन रहा है जो हकीकत नहीं है।
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स्वीडिश बैंकों में सूचना तकनीक का पहले से ही बड़े पैमाने पर प्रयोग होता रहा है, कई स्वीडिश बैंकों की सभी शाखाएं शत-प्रतिशत डिजिटल हैं। इस वजह से स्वीडिश मुद्रा क्रोन का प्रचलन बाजार में न्यूनतम हो गया है। स्वीडिश क्रोन केवल तीन-चार प्रतिशत की लेन-देन में प्रयुक्त होती है जबकि 96-97 प्रतिशत भुगतान बैंकिंग के इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों से हो रहा है। स्मार्ट फोन के आ जाने से मोबाइल पेमेंट सिस्टम सर्व सुलभ हो गया है। वैश्वीकरण के दौर में किसी भी ज्ञान या तकनीक का प्रसार शीघ्रता से विश्व भर में हो जाता है। इसलिए कैशलेस अर्थव्यवस्था को भी सभी देशों में स्वीकृति मिल रही है। भारत में भी स्वदेश रूपे कार्ड से भुगतान हो रहा है। यूं तो अर्थशास्त्रा बेहद गूढ़ विषय माना जाता रहा है, किन्तु हालिया नोटबंदी से उपजे हालातों ने तमाम नागरिकों को अर्थशास्त्रा की कई शब्दावलियों से परिचित कराया है।
‘कैशलेस इकाॅनमी’ इन दिनों खूब सुना जा रहा है, जिसका सीध मतलब यही है कि ‘टेक्नोलाॅजी’ की सहायता से आप प्रत्येक लेन देन करें, जिसमें कैश के आदान-प्रदान की कोई आवश्यकता नहीं। क्रेडिट/डेबिट कार्ड के साथ-साथ इन्टरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैकिंग, डिजिटल वाॅलेट जैसी सुविधओं को इसमें गिनाया जा सकता है, हालाँकि, तमाम प्रचार के बावजूद देश की आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी कैश पर ही डिपेंडेंट है। लोगों के पास क्रेडिट/डेबिट कार्ड जरूर हैं, किन्तु उसका प्रयोग लोग एटीएम से पैसा निकालने के लिए ही ज्यादा करते हैं, सीधी खरीददारी के लिए कम! इसके पीछे जो मुख्य कारण हैं, उनमें हर जगह प्लास्टिक मनी लेने की सुविध नहीं होना और डेबिट/क्रेडिट कार्ड से जुड़ी असुरक्षा की भावना है। आखिर, डेबिट/क्रेडिट की तमाम खबरें यूं ही तो नहीं आती हैं न! चूंकि, भारत अब इस दिशा में कदम बढ़ा चुका है। आजाद भारत के इतिहास में आज का वक्त ऐसा बिरला है कि हर नागरिक उन बातों को सुन रहा है जो हकीकत नहीं है।
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