Hindi, asked by bhavana6806, 26 days ago

चतुर बालक - लघुकथा ( please answer fast)​

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Answered by samruddhishajagtap
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बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक ब्राहमण रहता था। अत्यंत परिश्रम करने के बाद भी वह अपने परिवार का खर्च नहीं चला पाता था। उसका एक ही पुत्र था, जिसे वह बहुत प्यार करता था।एक दिन पिता और पुत्र धन कमाने की लालसा से परदेस के लिए रवाना हुए। रास्ते में घनघोर जंगल पड़ा। पुत्र को प्यास लगी। थोड़ी ही दूर पर उन्हें एक तालाब दिखाई दिया। तालाब के चारों ओर हरे भरे लहलहाते हुए वृक्ष थे। जिन पर चिड़ियां मधुर स्वरों में चहचहा रही थीं। पानी पीकर दोनों ने इधर उधर देखा। पास में ही एक बहुत बड़ा महल उन्हें दिखाई दिया। ब्राहमण और उसका पुत्र थक भी गए थे और उन्हें भूख भी लग रही थी।

वे दोनों महल की ओर चल पड़े। महल का द्धार खुला हुआ था, किंतु अंदर कोई नहीं था। महल में अनगिनत कमरे थे, जो सब धन धान्य से भरे हुए थे। किसी कमरे में गेहूं, किसी कमरे में चावल, किसी में चीनी, गुड़ और किसी में आटा आदि। एक कमरा तो मेवों से भरा पड़ा था। ब्राहमण रसोई घर में पहुंचा। चूल्हा जलाकर आराम से दाल चावल बनाया। पेट भर भोजन करके विश्राम करने के लिए जगह खोजने लगे। एक भण्डार घर में धान भरा हुआ था। वहीं थोड़ी सी जगह बनाकर दोनों लेट गए और अंदर से सांकल बंद कर ली।

थोड़ी देर में उन्हें भयंकर गर्जना सुनाई दी। उन्होंने किवाड़ की दरार से झांक कर देखा, एक विशालकाय दानव चला आ रहा है। दोनों भयभीत होकर उसे देखते रहे। उस दानव ने चूल्हा जलाकर बड़ा सा हांडा चढ़ाया। एक बड़ी सी परात में खीर परोसकर उसने खाना प्रारंभ किया। खीर की सोंधी सोंधी खुशबू से ब्राहमण के बेटे का जी ललचा गया। दानव खीर खा रहा था और ब्राहमण का बेटा ललचा कर देख रहा था। अंत में उससे रहा नहीं गया और पिता से बोला, ”पिता जी देखो, वह आदमी इतनी अच्छी खीर अकेले ही खाए जा रहा है। हम भी खाएंगे।“ ब्राहमण ने बेटे को डांटा कि ये दैत्य खीर के बजाय हम दोनों को ही खा जाएगा। चुपचाप इसी कोठरी में बैठे रहो, लेकिन बालक हठी और चंचल था, वह बार बार पिता से खीर खाने की जिद करता। ब्राहमण ने क्रोधित होकर कहा, ”मैं तुझे कहां से खीर दूं। मांगता है तो उसी से मांग।“

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