चतुर्वेदी जी को राष्ट्रीय कवि क्यों कहा जाता है
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हिन्दी जगत के कवि, लेखक, पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को बावई (मध्यप्रदेश) में हुआ। इनका परिवार राधावल्लभ सम्प्रदाय का अनुयायी था इसीलिए चतुर्वेदीजी के व्यक्तित्व में वैष्णव पद कंठस्थ हो गए। प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। 15 वर्ष की आयु में आपका विवाह हुआ और अगले ही वर्ष 8 रु. मासिक वेतन पर इन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया।
1913 में चतुर्वेदीजी ने प्रभा पत्रिका का संपादन आरंभ किया, जो पहले पूना और बाद में कानपुर से छपती रही। इसी दौरान उनका परिचय गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ जिनके देशप्रेम और सेवाभाव का चतुर्वेदीजी पर गहरा प्रभाव पड़ा। 1918 में कृष्णार्जुन युद्ध नामक नाटक की रचना की और 1919 में जबलपुर से कर्मवीर का प्रकाशन किया।
12 मई 1921 को राजद्रोह में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1943 में आप हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे। हिन्दी काव्य के विद्यार्थी माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं पढ़कर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। उनकी कविताओं में कहीं ज्वालामुखी की तरह धधकता हुआ अंतरमन है, जो विषमता की समूची अग्नि सीने में दबाए फूटने के लिए मचल रहा है तो कहीं विराट पौरूष की हुंकार, कहीं करुणा की दर्दभरी मनुहार।
भाषा और शैली की दृष्टि से उन पर आरोप लगाया जाता था कि उनकी भाषा बड़ी बेडौल है। उसमें कहीं-कहीं व्याकरण की अवहेलना की गई है। किंतु ये सारे दोष एक बात की सूचना देते हैं कि कवि ने अपनी अभिव्यक्ति को इतना महत्वपूर्ण समझा है कि उसे नियमों में हमेशा आबद्ध रखना उन्हें स्वीकार नहीं हुआ। 1949 में उ नको साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। 30 जनवरी 1968 को उनकी मृत्यु हो गई।