चतुष्फलकीय कि्स्टल क्षेत्र में d^5 तंत्र के लिए संभावित तथा इलेक्ट्रॉनिक विन्यास दीजिये
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Explanation:
1. संक्रमण धातु संकुल के केन्द्रीय आयन का कार्य करती हैं। लिगण्ड एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करता है, जबकि संक्रमण धातु आयन के रिक्त कक्षक इन इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करते हैं।
2. लिगेण्ड (ऋणात्मक/द्विध्रुवी) बिन्दु आवेश की तरह माने जाते हैं।
3. संकुल यौगिकों में धातु आयन व लिगेण्ड के मध्य बनने वाले आबन्ध को पूर्णतया आयनिक माना जाता , है, अर्थात धातु आयन व लिगेण्ड परस्पर स्थित विद्युत आकर्षण बल द्वारा जुड़े रहते हैं।
4. यह स्थिर विद्युत आकर्षण बल धनायन व ऋणायन के मध्य आयन-आयन आकर्षण बल हो सकता है या धनायन व उदासीन लिगेण्ड के मध्य आयन-द्विध्रुव आकर्षण बल हो सकता है।
अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में 4-कक्षकों को विपाटन
एक मुक्त धातु आयन में सभी पाँच कक्षक (t2g और eg) अपभ्रंश होते हैं, अर्थात् उनकी ऊर्जा समान होती है। एक अष्टफलकीय संकर [ML6]n+ पर विचार करें जिसमें धातु आयन Mn+ अष्ट्रफलक के केन्द्र पर है तथा कोनों पर एकदन्ती लिगेण्ड (L) द्वारा घिरा हुआ है।
जब x,y और z अक्ष पर समस्त छ: लिगेण्ड धातु आयन की ओर अग्रसर होते हैं, तब लिगेण्ड के ऋण छोर (इलेक्ट्रॉन द्वारा) d-कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से प्रतिकर्षित होते हैं। इस प्रतिकर्षण द्वारा पाँचों d-कक्षकों की ऊर्जाओं में परिवर्तन होता है।
चूंकि eg, कक्षकों (dx2– y2 और dz2) की पालियाँ केन्द्रीय धातु आयन के समीप जाने वाले लिगेण्ड के मार्ग में आती हैं,
अत: t2g कक्षकों (dxy, dyz, dzx) की अपेक्षा इनमें इलेक्ट्रॉनों का प्रतिकर्षण अधिक होता है। इस कारण पाँच d-कक्षक दो ऊर्जा समूहों में विभक्त हो जाते हैं, अर्थात् eg कक्षकों की ऊर्जा में वृद्धि होती है। धातु आयन के पाँच d-कक्षकों का भिन्न ऊर्जा के दो समूहों में विभाजन, d – d विपाटन या क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहलाता है। t2g और eg कक्षकों की ऊर्जा के मध्य के अन्तर को Δ0 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। (Δ = ऊर्जा में अन्तर व 0 = अष्टफलकीय) इसे 10Dq द्वारा भी दर्शाया जाता है और यह क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहलाती है।
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