Hindi, asked by Anonymous, 4 months ago

चट्टानों की प्यास कैसे बचाई जा सकती है ?


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Answered by Anonymous
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राजस्थान’ देश का सबसे बड़ा दूसरा राज्य है परन्तु जल के फल में इसका स्थान अन्तिम है। यहाँ औसत वर्षा 60 सेण्टीमीटर है जबकि देश के लिए यह आँकड़ा 110 सेमी है। लेकिन इन आँकड़ों से राज्य की जल कुण्डली नहीं बाची जा सकती। राज्य के एक छोर से दूसरे तक बारिश असमान रहती है, कहीं 100 सेमी तो कहीं 25 सेमी तो कहीं 10 सेमी तक भी।

यदि कुछ सालों की अतिवृष्टि को छोड़ दें तो चुरू, बीकानेर, जैलमेर, बाड़मेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर आदि में साल में 10 सेमी से भी कम पानी बरसता है। दिल्ली में 150 सेमी से ज्यादा पानी गिरता है, यहाँ यमुना बहती है, सत्ता का केन्द्र है और यहाँ पूरे साल पानी की मारा-मारी रहती है, वहीं रेतीले राजस्थान में पानी की जगह सूरज की तपन बरसती है।

दुनिया भर के अन्य रेगिस्तानों की तुलना में राजस्थान के मरू क्षेत्र की बसावट बहुत ज्यादा है और वहाँ के वाशिन्दों में लोक, रंग, स्वाद, संस्कृति, कला की सुगन्ध भी है।

पानी की कमी पर वहाँ के लोग आमतौर पर लोटा बाल्टी लेकर प्रदर्शन नहीं करते, इसकी जगह एक एक बूँद को बचाने और उसे भविष्य के लिए सहेजने के गुर पीढ़ी-दर-पीढ़ी सिखाते जाते हैं। रेगिस्तानी इलाकों में जहाँ अंग्रेजी के ‘वाय’ आकार की लकड़ी का टुकड़ा दिखे तो मान लो कि वहाँ कुईयाँ होगी। कुईयँ यानि छोटा कुआँ जो पूरे साल पानी देता है।

सनद रहे कि रेगिस्तान में यदि जमीन की छाती खोदकर पानी निकालने का प्रयास होगा तो वह आमतौर पर खारा पानी होता है। गाँव वालों के पास किसी विश्वविद्यालय की डिग्री या प्रशिक्षण नहीं होता, लेकिन उनका लोक ज्ञान उन्हें इस बात को जानने के लिए पारंगत बनाता है कि अमुक स्थान पर कितनी कुईयाँ बन सकती हैं। ये कुईयाँ भूगर्भ जल की ठाह पर नहीं होती, बल्कि इन्हें अभेद चट्टानों के आधार पर उकेरा जाता है।

कुईयाँ तो खुद गई लेकिन इसमें पानी कहाँ से आएगा? क्योंकि इन्हें भूजल आने से पहले ही खोदना बन्द किया जाता है। इस तिलस्म को तोड़ा है गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के मशहूर पर्यावरणविद तथा अभी तक हिन्दी की सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लेखक अनुपम मिश्र ने।

उन्होंने रेगिस्तान के बूँद-बूँद पानी को जोड़कर लाखों कण्ठ की प्यास बुझाने की अद्भुत संस्कृति को अपनी पुस्तक - ‘राजस्थान की रजत बूँदें’ में प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक काफी पहले आई थी, लेकिन तालाब वाली पुस्तक की लोकप्रियता की आँधी में इस पर कम विमर्श हुआ। हालांकि इस पुस्तक की प्रस्तुति, उत्पादन, भाषा, तथ्य, कहीं भी तालाब वाली पुस्तक से उन्नीस नहीं हैं।

बारिश का मीठा पानी यदि भूजल के खारे पानी में मिल जाए तो बेकार हो जाएगा। मानव की अद्भुत प्रवीणता की प्रमाण ये कुईयां रेत की नमी की जल बूँदों को कठोर चट्टानों की गोद में सहेज कर रखती हैं।

ऐसी कुईयाँ राजस्थान के शेखावटी इलाके में मिलती हैं। इनका केवल थार वाले इलाके में मिलने का कारण महज् वहाँ का रेगिस्तान ही नहीं है। तथ्य यह है कि वहाँ के लोग जानते हैं कि मिट्टी के तले कठोर चट्टानों की संरचना केवल यहीं मिलती हैं।

हालांकि इन छोटे कुओं में पानी की तल घटता-बढ़ता है, परन्तु ‘वाई’ आकार के लकड़ी के लट्ठों वाली इन कुइयों से पूरे साल हर दिन तीन-चार बाल्टी पानी मिल ही जाता है। जिन इलाकों में सरकारी जल योजनाएँ फ्लाप हैं वहाँ ये कुइयाँ बगैर थके पानी देती रहती हैं।

ये कुइयाँ कहाँ खुद सकती है? इसका जानकार तो एक व्यक्ति होता है, लेकिन इसकी खुदाई करना एक अकेले के बस का नहीं होता। सालों साल राजस्थान की संस्कृति में हो रहे बदलाव के चलते अब कई समूह व समुदाय इस काम में माहिर हो गए हैं।

खुदाई करने वालों की गाँव वाले पूजा करते हैं, उनके खाने-पीने, ठहरने का इन्तजाम गाँव वाले करते हैं और काम पूरा हो जाने पर शिल्पकारों को उपहारों से लाद दिया जाता हैं। यह रिश्ता केवल यहीं समाप्त नहीं हो जाता, प्रत्येक वार-त्योहार पर उन्हें भेंट भेजी जाती हैं। आखिर वे इस सम्मान के हकदार होते भी हैं।

Answered by yatsu82
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Explanation:

Suno Na yatri please app mom ko bolka dakna na.

Please mera bara ma bolna mom ko aur ya mat batana ki hm pyar krta sirf app bolna ki frnd hai.

Aur sirf notes ka lakr hi bat hota hai. Aur bola ki dusra state ma hai toh app boldana ki ma mean saurj sa / mera sa app woha ka sates ka prdhna ka about study related hi bat hoti hai. Bass. ⚫

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