चद्रंशखेर आजाद को पलिुलिस पकड़ नहीं पाती थी ,क्यों?
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आज़ाद के बारे में मशहूर था कि 'उनका निशाना ज़बरदस्त था.' 17 दिसंबर, 1927 को अंग्रेज़ डीएसपी जॉन साउन्डर्स को मारने के बाद जब भगत सिंह और राजगुरु डीएवी कॉलेज के हॉस्टल की ओर भाग रहे थे, तो एक पुलिस हवलदार चानन सिंह उनके पीछे दौड़ रहा था.
हॉस्टल से सारा नज़ारा देख रहे चंद्रशेखर आज़ाद को ये अंदाज़ा हो गया था कि भगत सिंह और राजगुरु ने अपनी पिस्तौल साउन्डर्स पर खाली कर दी है और उनके पास गोलियाँ नहीं बची हैं.
चंद्रशेखर आज़ाद के साथी रहे शिव वर्मा अपनी क़िताब 'रेमिनेंसेज़ ऑफ़ फ़ेलो रिवोल्यूशनरीज़' में लिखते हैं, 'ये ज़िदगी और मौत की दौड़ थी और दोनों के बीच का फ़ासला धीरे-धीरे कम होता जा रहा था. भागते हुए चानन सिंह की बाहें भगत सिंह को बस पकड़ने ही वाली थीं, लेकिन इससे पहले कि चानन सिंह ऐसा कर पाते एक गोली उनकी जाँघ के पार निकल गई. वो गिर पड़े और बाद में ज़्यादा ख़ून निकल जाने से उनकी मौत हो गई. ये गोली अपनी माउज़र पिस्तौल से चंद्रशेखर आज़ाद ने चलाई थी.'
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