चढ़त तुरंग चतुरंग साजि सिवराज, चढ़त प्रताप दिन-दिन अति जग मैं। भूषन चढ़त मरहट्टन के चित्त चाव; खग्ग खुलि चढ़त है अरिन के अंग मैं। रस
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char dhin kay zkbsgs ishhsgs kshgsyso isj s ish
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nahi aata hai sorryyyyyyýyyyyyyyyyyyyyyy
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