Hindi, asked by bapurnicool, 1 year ago

cbse expression Essay on Jayaprakash Narayan: the real ‘Lok Nayak’ in Hindi

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Answered by ashlee
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                                          जयप्रकाश नारयण -   सच्चे लोक नायक
जयप्रकाश नारयण , भारत के एक बहुत बड़े पैमाने के नेता एवं देश भक्त थे।
 ११  अक्टूबर को जन्मे , नारयण साहब अपने महान कर्मो एवं एक असाधाराम व्यक्तित्व के कारण समझ में लोक नायक के नाम से जाने जाते थे।  
विद्यापीठ में अपनी स्कूली शिक्षा पूरा करने के बाद वे U.S में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए।
१९२९ में भारत लौटने के उपरांत उन्होंने कांग्रेस में योगदान दिया। यहा गांधीजी उनके गुरु बने। इस दौरान वे कदम कुआ पटना  में ,अपने परम मित्र गंगा शरण सिन्हा के साथ रहने लगे।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते हुए, वे कई बार अंग्रेज़ो के चंगुल में फ़से और जैल भी गए। परन्तु वे आसानी से दबने वालो में से नही थे। जयप्रकाश नारयण अपने आंदोलन में जुटे रहे। भारत छोरो आंदोलन के दौरान वे जन समाज  में लोक प्रिय हो उठे। नारायण जी केवल भारत ही नही , भारत की जनता  के लिए लड़ते थे। १५ अगस्त , १९४७ के बाद वे रुके नही।
स्वाधीन भारत को अपने उच्चतम शिखर पर पोह्चाने के लिए वे एक के बाद एक आंदोलन करते ही रहे। गुजरात का नव निर्माण आंदोलन , बिहार आंदोलन , पटना आंदोलन उनके कुछ  प्रमुख आंदोलनों में से हैं। १९७० के दौरान , प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के खिलाफ लरने वाले नेताओं में वे मुख्य थे।
क्या हम वो दिन कभी भूल सकेंगे जब उन्होंने , रामलीला मैदान में १००,००० से भी ज़्यादा लोगो को इक्कठा करते हुए यह नारा लगाया था की - " सिंघासन छोरो , जनता आ रही है ! "
८ अक्टूबर , १९७९ में बिहार में उनकी मृत्यु हुयी। शारीरिक रूप में न प्रस्तुत रहने पर भी , वे हमारे बीच सर्वथा अमर बनकर रहेंगे।  सच मुच , जयप्रकाश नारायण सच्चे लोक नायक थे। 
Answered by kvnmurty
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       जयप्रकाश नारायण एक अच्छे और आदर्श लोकनायक थे।  उनके यह शीर्षक लोगों ने दिया क्यों कि वे लोगों के समस्याओं के लिए जिये और काम की । उन्हों ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया। और सामाजिक समस्याओं के खिलाफ भी लड़ा। उन्हों ने स्त्रियों की और उनकी राय की इज्जत की । उन्हों ने राजनीति का सही मतलब बताई कि राजनीति वो है जो लोगों की खुशी बढ़ाए। वे  लोगों की भलाई करने वाली सोशलिसम चाहते थे।  वे चाहते थे कि जनता की हक जो होते हैं लोकतन्त्र में उनका उल्लंघन न हो।  राजनैतिक पक्षों से लोगों की भलाई हो ।

     जयप्रकाश नारायण एक आदर्शवादी कार्यकर्ता थे जिसने भारतीय स्वतन्त्रता के लिए अपना जीवन समर्पित किया ।  उन्हों ने राजपूत राजाओं के पराक्रम के कथाएं और भगवद गीता पढ़ी और उनसे बहुत प्रभावित हुए ।  उन्हों ने पढ़ाई में अच्छे अंक पाये और अमेरिका में पढ़ाई की । अगर चाहते तो बहुत धन कमा सकते थे। पर लोगों की सेवा में जीवन बिताया।  

   
नारायण ने एक स्वतंत्र योद्धा प्रभावती देवी से शादी की।  बाद में उन्हों ने अमेरिका में पढ़ाई की। जब वे अमेरिका में थे उन्हों ने अपनी बीबी को गांधीजी के आश्रम में रहने को कहा।  प्रभावती देवी कस्तूरबा जी के साथ स्वतन्त्रता की लड़ाई में भाग लेती थी।  अमेरिका से वापस आने के बाद नारायण जी जवाहरलाल नेहरू जी के पुकार सुनकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।  भारत राष्ट्रिय कॉंग्रेस में 1929 में भर्ती हुए।  गांधीजी के शिष्य बने।  अनेक बार जेल गए।  अंग्रेजों ने उन्हे बहुत मारा और पीठा ।  फिर  भी जेपी गांधीजी के साथ चले।

    
राम मनोहर लोहिया, मीनू मसानी , अशोक मेहता और यसुफ देसाई इत्यादी देशभक्तोंके साथ आजादी के लिए तरह तरह के विरोध अंग्रेजों के साथ कराते थे।  1932 में ग्णाधीजी के पुकार के अनुसार  सिविल-डिस-ओबीड़िएन्स (सहायता से इंकार) में भाग लिए और जेल गए।  जेल से भाग गए अपने दोस्तों के साथ।

     
वे सोषलिस्म पर अधिक भरोसा करते थे।  इसी लिए कॉंग्रेस के अंदर होकर एक पार्टी “कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी” स्थापित किया और उसका मुख्य सचिव (जनरल सेक्रेटरी) बने।  राजनीति का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए , उनके मत में , लोगों की खुशी में उद्धार ।   आजादी के बाद स्वार्थ में पैसे कमाने के काम नहीं किया । सिर्फ लोगों के सेवा में जीवन बिताया।  इस से पता लगता है कि वे निस्वार्थ योद्धा थे आजादी के, जैसे गांधीजी ।

      1942
में गांधीजी के क्विट-इंडिया (भारत छोड़ो) आंदोलन में एक नायक के रूप में खास भूमिका निभाई। उस अभियान में आगे के पहले पंक्ती  में से अंग्रेज़ पुलिस का सामना किया।  आजादी के बाद और गांधीजी  के मरने के बाद उन्हों ने इस पार्टी को कांग्रेस से अलग किया और लोगों की भलाई के लिए काम किया।

 
    1960 के बाद  में उन्हों ने बिहार राज्य  के राजनीति में भाग लिया।  1970 के बाद गुजरात के राजनीति में भाग लिया । 1975 में देश बहुत खराब स्थिति  में थी।  भ्रष्टाचार फैला हुआ था। खाने की चीज सब लोगों को नहीं मिलते थे।  गरीबों की हालत बहुत बुरी हुई थी।  आबादी बहुत बढरही थी।  सरकार ने  “एमर्जेंसी” लागू किया  इन सब चीजों पर नियंत्रण लाने के लिए।  लेकिन उससे लोगों को हानि पहुंची।  लोगों पर अत्याचार हुए।  इस लिए “एमर्जेंसी” के खिलाफ उन्हों ने अन्य विरोधी दल के लोगों को इकट्ठा किया। जेपी के नेतृत्व में राजनैतिक नेता लोग चले, जेल गए। लोगों के जागरूकता लायी ।  इसको जेपी आंदोलन कहते हैं।

 
     उन्हों ने अगर चाहा तो बड़े पद पर राज कर सकते थे। लेकिन सच्चे नायक जैसे सिर्फ लोगों की भलाई और खुशी चाही । इसी लिए वे लोकनायक बने।

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