Hindi, asked by nitinnair2003pgwdqs, 1 year ago

challenges of a soldiers life in hindi

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Answered by vijayasimhardg
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जम्मू-कश्मीर के गुरेज़ में बुधवार को हुए दो हिमस्खलन में मरने वाले जवानों की संख्या 14 हो गई है। शुक्रवार को चार और शवों को निकाला गया है। इससे पहले गुरुवार को 10 जवानों के शव निकाले गए थे। वहीं, खोजी दल ने 7 जवानों को ज़िंदा बाहर निकाला। घायल सैनिकों का इलाज किया जा रहा है। ये पहली बार नहीं जब ऐसी दुर्गम परिस्थितियों में हमारे सैनिकों ने जान गंवाई हो।

 

इससे पहले सियाचिन में 20,500 फीट की ऊंचाई पर तीन फरवरी 2016 को आए हिमस्खलन में मद्रास रेजिमेंट के 10 जवानों की मौत हो गई थी। आइए हम आपको बताते हैं बर्फीले क्षेत्रों में सामने आने वाली उन चुनौतियों के बारे में जिस वजह से जवानों की जान हर वक्त खतरे में रहती है।

 ऊंचाई में सांस लेने की दिक्कत

हमारे सेना के जवानों को हिमालय क्षेत्र की लगातार निगरानी करनी होती है, जिसको लेकर पाकिस्तान से हमारा लगातार विवाद रहता है। ये जमीन से काफी मीटर की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। इतनी ऊंचाई पर सामान्य इंसान को भी सांस लेने तक दिक्कत होती है।

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-70 डिग्री रहता है तापमान

जरा सा तापमान कम होता है तो हम अपने घरों में दुबक जाते हैं तो जरा सोचिए -70 डिग्री तापमान में हमारे जवानों का क्या हाल होता होगा। वहां कोई हीटर का ब्लोअर नहीं चलता। जवानों को चौकस होकर दिन रात अपनी ड्यूटी करनी ठंड के समय वहां भारत और पाकिस्तान दोनों ओर के करीब 10000 से 20000 तक सैनिक वहां रहते हैं।

160 किमी/घंटे की रफ्तार से ठंडी हवाएं

इतनी ठंडी हवाओं में हमारे सैनिक तैनात रहते हैं। अत्यधिक ठंज से आंतों के जम जाने से मौत हो सकती है। ऐसी बर्फीली जगह में बर्फबारी से भी अधिक खतरनाक तेज रफ्तार में चल रही हवाएं होती हैं।

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