Hindi, asked by harshitharinkhere, 19 days ago

Chandra gehna se lauti ber extra question and answers​

Answers

Answered by gaurim614
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Answer:

निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

देख आया चंद्र गहना।

देखता हूँ दृश्य अब मैं

मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।

एक बीते के बराबर

यह हरा ठिगना चना,

बाँधे मुरैठा शीश पर

छोटे गुलाबी फूल का,

सज कर खड़ा है।

चंद्र गहना से लौटते कवि कहाँ रुका और क्यों?

चने का पौधा कवि को कैसा लग रहा है?

चने ने किसका मुरैठा बाँध रखा है?

चंद्र गहना से लौटती बेर के सन्दर्भ में ‘इस विजन में ……… अधिक हैं’ -पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?

चंद्र गहना से लौटती बेर के सन्दर्भ में ‘अलसी’ के मनोभावों का वर्णन कीजिए।

चंद्र गहना से लौटती बेर पाठ के आधार पर प्रकृति अपनी प्रसन्नता किस प्रकार व्यक्त कर रही है?

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता के आधार पर तालाब के सौंदर्य का वर्णन कीजिए।

कवि को ऐसा क्यों लगता है कि चना विवाह में जाने के लिए तैयार खड़ा है? चंद्र गहना की लौटती बेर कविता के आधार पर बताइए।

गहना से लौटती बेर (केदारनाथ अग्रवाल)

Answer

चंद्र गहना से वापस लौटते समय कवि ने आसपास बिखरे प्राकृतिक सौंदर्य को देखा। वह अभिभूत हो उठा और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए वह खेत की मेड़ पर बैठ गया। वह उस सौन्दर्य में खो गया।

चने का पौधा आकार में छोटा होने से ठिगना दिख रहा है। यह एक बीते के बराबर झाड़ीदार है। यह हरे रंग का है। इस पौधे के ऊपरी भाग में गुलाबी रंग के फूल भी आए हैं, जिससे यह दूल्हे के समान सुंदर दिख रहा है।

चने ने अपने सिर पर गुलाबी फूलों का मुरैठा बाँध रखा है, जो उसके सौन्दर्य में चार चाँद लगा रहा है |

उपर्युक्त पंक्तियों में कवि का आक्रोश प्रकट हुआ है, क्योंकि शहर या नगर में रहने वाले लोगों में पैसों के प्रति इतना लगाव बढ़ गया है कि इसके आगे उन्हें सब कुछ तुच्छ-सा लगता है। वे अपने व्यापार पर अधिक ध्यान देते हैं। वे प्रेम और सौंदर्य से बहुत दूर हो चुके हैं। कवि के आक्रोश का कारण यह है कि-

कवि प्रकृति को बहुत प्यार करता है।

वह शहर के बनावटी जीवन को अच्छा नहीं मानता है।

गाँवों का वातावरण शहर के शोर, प्रदूषण, भागमभाग की जिंदगी से कोसों दूर है।

गाँवों में प्रकृति के अंग-अंग प्यार में डूबे नज़र आते हैं।

कवि ने अलसी को हठीली नायिका के रूप में चित्रित किया है। वह चने के पास हठपूर्वक उग आयी है। दुबले शरीर और लचकदार कमरवाली अलसी सिर पर नीले फूल धारण कर प्रेमातुर हो रही है कि उसे जो छुएगा उसको वह अपने हृदय दान देगी।

दूल्हे के रूप में चने और पीले हाथों वाली सजी-धजी सरसों को देखकर लगता है कि प्रकृति का एक भाग ब्याह-मंडप बन गया है। फागुन द्वारा गायन किया जा रहा है। सुगंधित समीर चलने से अन्य पेड़-पौधे हिल-डुल रहे हैं। यह देखकर ऐसा लगता है कि प्रकृति अपना आँचल हिलाकर खुशी प्रकट कर रही है।

कवि जिस स्थान पर बैठा प्राकृतिक सौंदर्य निहार रहा था वहीं एक तालाब था, जिसके किनारे पर पत्थर पड़े थे। तालाब की तली में भूरी घास उगी है जो पानी की लहरों के साथ लहरा रही है। इस पानी में सूर्य का प्रतिबिंब आँखों को चूँधिया रहा है। तालाब में एक बगुला ध्यानमग्न खड़ा है जो मछलियों को देखते ही उनको पकड़कर खा जाता है।

चने का पौधा हरे रंग का ठिगना-सा है। उसकी ऊँचाई एक बीते के बराबर होगी। उस पर गुलाबी फूल आ गए हैं। इन फूलों को देखकर प्रतीत होता है कि उसने गुलाबी रंग की पगड़ी बाँध रखी है। उसको ऐसा सज-धज देखकर कवि को लगता है कि वह विवाह में जाने के लिए तैयार खड़ा है।

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