Character sketch of abhay singh in matribhoomi ka maan in hindi
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sry but I can't understand
अभयसिंह मेवाड़ के वफ़ादार व कर्त्तव्यपरायण सेनापति हैं। महाराणा सेनापति पर विश्वास करते हैं और उन्हें कुशल सेनापति, बुद्धिमान तथा अच्छा सलाहकार मानते हैं। वे शासन का कोई भी कार्य बिना अभयसिंह की सम्मति के नहीं करते। महाराषणा अपने हृदय की बात बूंदी के शासक राव हेमू को इन्हीं के द्वारा पहुँचवाते हैं। अभयसिंह महाराणा के संदेश को अत्यन्त सुन्दर ढंग से राव हेमू सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और महाराणा के विचारों से राव हेमू को प्रभावित करने में कुछ कसर नहीं रखते। अभयसिंह किसी भी बात को तर्क से सिद्ध करने में कुशल हैं। जब भी महाराणा किसी क्षेत्र में हतोत्साहित होते हैं या कोई निश्चित निर्णय नहीं ले पाते तब अभयसिंह सदैव उनको उत्साहित तथा निर्णय लेने में उनकी सहायता करते हैं। जब चारणी नकली दुर्ग बनाने का सुझाव महाराणा को देती है तब अभयसिंह इस सुझाव का समर्थन करते हुए नकली दुर्ग का निर्माण करवाते हैं। अभयसिंह महाराणा के दाहिने हाथ हैं। इसका उदाहरण इन पंक्तियों से मिलता है जब महाराणा कहते हैं-” मैं महाराणा लाखा प्रतिज्ञा करता हूँ कि जब तक बूँदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।” इस पर अभयसिंह महाराणा से कहते हैं कि छोटे से बूँदी दुर्ग को विजय करने के लिए इतनी बड़ी प्रतिज्ञा करने की क्या आवश्यकता है ? बूँदी को उसकी धृष्टता के लिए दण्ड दिया ही जाएगा, लेकिन हाड़ा लोग बहुत वीर हैं। युद्ध करने में वे यम से भी नहीं डरते। यह अवश्य है कि अंत में विजय हमारी ही होगी, किन्तु समय लग सकता है। इन पंक्तियों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अभयसिंह एक अत्यन्त बुद्धिमान, वाक्पटु एवं कुशल सेनापति हैं। अभयसिंह शत्रु की वीरता को भी पहचानते हैं और उसकी वीरता का वर्णन महाराणा के सामने इस प्रकार करते हैं कि महाराणा यह न समझे कि वे उनसे युद्ध में हार जाएँगे। वे महाराणा से यह कहते हैं कि उनके वीर होने के कारण युद्ध काफ़ी दिन तक चल सकता है। लेकिन विजय महाराणा की ही होगी। अपने महाराणा को वे कभी नाराज़ नहीं करना चाहते। उनकी कही हुई बात को सदैव पूरा कराने में सहायक होते हैं। महाराणा की मान-प्रतिष्ठा के लिए अभयसिंह पूर्ण रूप से समर्पित हैं। इसके अतिरिक्त जब नकली दुर्ग पर युद्ध होता है तब भी अभयसिंह पूर्ण सहयोग देते हैं और नकली दुर्ग पर विजय प्राप्त करने के बाद मेवाड़ का झण्डा फहराते हैं।