Hindi, asked by Anya8335, 1 year ago

Charles dickens essay ak vivek dimag ka hota ai ak dil ka

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Answered by kashyap36
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विवेक' ऐसी भावना है, जो हमें सही गलत की पहचान करवाता है और गलत मार्ग पर बढ़ने से रोकता है। विवेक का संबंध दिल और दिमाग से नहीं है। हमारा निर्णय दिल और दिमाग से लिया हो सकता है। प्रायः लोग विवेक का प्रयोग अपने स्वार्थों के लिए करते हैं। जब हम अपने स्वार्थों का उपयोग करने के लिए किसी की सहायता करते हैं, तो वह विवेक दिमाग से लिए गए निर्णय पर आधारित होता है। इसके विपरीत जब हम दूसरे की सहायता के लिए अपने विवेक का प्रयोग करते हैं, तो वह निर्णय दिल से लिया गया होता है।

एक विवेक दिमाग का होता है और एक विवेक दिल का होता है। यह कथन सत्य है। हम एक बात को यदि दिल के अनुसार सोचें फिर दिमाग के अनुसार सोचें, तो दोनों के निर्णय अलग-अलग होंगे। इसका मतलब है दिल उन बातों पर अपना विवेक का पूर्ण इस्तेमाल नहीं करता, जो उसे सोचना पड़ता है। दिमाग इन बातों पर अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल करता है और `किन्तु, परन्तु` अधिक सोचता है। इस तरह दोनों के नतीजे अलग-अलग आते हैं।
Answered by Suryavardhan1
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एक बुद्धिमता दिल की होती है और एक दिमाग की | हम कई बार जहां दिमाग का प्रयोग करना होता है वह दिल का प्रयोग कर लेते हैं और जहां दिल का प्रयोग करना होता है वह दिमाग का प्रयोग कर लेते हैं | इन दोनों परिस्थितियों में अगर हम गलत फैसले लेते हैं तो हमें पछताना पड़ता है |

जब भी हम ने अपने दिमाग से लेते हैं तो वह निर्णय लेने के पीछे कहीं ना कहीं हमारा स्वार्थ अवश्य होता है | परंतु जब भी हम अपने दिल से निर्णय लेते हैं तो उसमें हमारा स्वार्थ नहीं होता, है हम हमेशा अगले व्यक्ति की सहायता करने का ही सोचते है |

अगर हम तनाव की स्थिति में होते है, तो हम अपनी गहराई से सोचने की क्षमता को देते हैं उसी समय अगर हमें कोई निर्णय लेना हो तो वह निर्णय हमारे दिमाग से लिया जाता है |हम किसी विवाद के समय दिल से सोचते हैं तो वह हमारी सबसे बड़ी भूल होगी यह हमारे लिए ठीक रहेगा कि विवाद के समय हम दिमाग का प्रयोग करें |

सही निर्णय लेने के लिए हमें दिल और दिमाग दोनों का प्रयोग करना होगा अगर हम पहले अपने दिल से निर्णय लेकर फिर उस निर्णय के बारे में दिमाग से सोचें तो हमसे अपने पूरे जीवन में भी गलती नहीं होगी | जिस वक्त दिल दिमाग पर या फिर दिमाग दिल पर हावी हो जाए उसी समय ही तो हम से गलती हो जाती है |

अतः हमें परिस्थितियों के अनुसार सोचना पड़ता है कि दिल से सोचें या दिमाग से लेकिन इन सबके बाद भी सत्य है कि जो बातें हम दिल से लेते हैं उनकी मान्यता दिमाग से लिए जाने वाले निर्णयों से अधिक होती है |
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