Chausar kee khel main kin kin chizoo ki baazi lagaii
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काम करूंगा “| युधिष्ठिर की इस प्रतिज्ञा पर सभी भाई सहमत हो गये थे |
दुसरी तरफ दुर्योधन पांड्वो के वैभव से इर्ष्या कर रहा था कि उसने पड़ोसी राज्यों से मित्रता कर अपने साम्राज्य का विस्तार कर दिया | अब उसने अपनी बैचेनी को अपने मामा शकुनि को बताई | शकुनि ने भी दुर्योधन को पांड्वो के विरुद्ध ना जाने की सलाह दी और कहा “दुर्योधन तुम इतना चिंतित क्यों हो रहे है तुम्हारे पास इतना सारा साम्राज्य है तो तुम्हे पांड्वो से इर्ष्या क्यों है तुम्हारे पक्ष में भीष्म पितामह ,द्रोणाचार्य और अस्व्थामा जैसे शूरवीर हैजिनकी सहायता से तुम विश्व विजयी बन सकते हो , फिर भी तूम इतने दुखी क्यों हो ” |
मामा शकुनि की बात सुनकर दुर्योधन ने कहा कि “अगर हमारे पास इतनी ताकत है तो हम इन्द्रप्रस्थ पर आक्रमण क्यों ना कर दे और पांड्वो से राज्य छीन ले “| मामा शकुनि ने दुर्योधन को समझाया कि “दुर्योधन जोश में होश मत गवाओ , पांडवो पर जीत पाना उतना आसान नही है क्योंकि वो भी कुरु वंश के है अगर फिर भी तुम उनसे लड़ना चाहते हो तो मेरे पास एक उपाय है जिससे बिना युद्ध के ही हम उनसे उनका राज्य छीन सकते है ” | मामा शकुनि की बात सुनकर दुर्योधन उद्दिग्न हो गया और शकुनि से उपाय के बारे में पूछा |
मामा शकुनि ने कहा “दुर्योधन जैसा कि तुम जानते हो युधिष्ठिर को चौसर का खेल खेलने का शौक है लेकिन खेल में वो मुझसे जीत नही सकता है क्योंकि मै एक मंझा हुआ खिलाड़ी हु , तुम युधिष्ठिर को खेल के लिए आमंत्रित करो , मै तुम्हारी तरफ से युधिष्ठिर के खिलाफ खेलूँगा और खेल में बिना युद्ध के सारा राज्य उनसे छीन लूँगा ” | मामा शकुनि की इस योजना को सुनकर दुर्योधन प्रफ्फुलित हो उठा और उसके मन में पांड्वो को पराजित करने की एक आस दिखी |
अब दुर्योधन और शकुनि राजा धृतराष्ट्र के पास गये और उनसे चौसर के खेल का आयोजन रखने का आग्रह किया | धृतराष्ट्र ने कहा कि वो विदुर की सलाह के पश्चात इसका निर्णय करेंगे लेकिन दुर्योधन को बिना पूछे इस खेल का आयोजन करने के लिए अपने पिता को बाध्य किया | अंत में धृतराष्ट्र को उनकी बात माननी पड़ी और उसें चौसर के खेल के आयोजन की घोषणा करवाई | विदुर को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने धृतराष्ट्र को बताया कि इस खेल से हमारे कुल का नाश हो जाएगा लेकिन पुत्र प्रेम में धृतराष्ट्र कुछ नही बोले | धृतराष्ट्र ने विदुर को युधिष्ठिर को खेल का न्योता देने को भेजा |
धृतराष्ट्र का आदेश मानते हुए विदुर पांड्वो के पास गये और चौसर का खेल खेलने का न्योता दिया | युधिष्ठिर ने चौसर के खेल को विवाद का जड़ बताया और इसके लिए विदुर जी की सलाह ली | विदुर जी ने कहा “मै भी जानता हु कि चौसर का खेल विवाद की जड़ होता है किन्तु राजा के आदेशनुसार मै केवल तुम्हे न्योता देने आया हु तुम आओ या ना आओ ये तुम्हारी इच्छा है ” | उस समय में न्योते पर ना जाने को अपमान माना जाता था इसलिए युधिष्ठिर को डर था कि उनके ना जाने से ही कही विवाद ना बन जाए | इसलिए युधिष्ठिर ने विदुर जी का न्योता स्वीकार कर लिया |अब युधिष्ठिर अपने परिवार के साथ हस्तिनापुर पहुचे और रात को विश्राम करके अगले दिन सभा मंडप में पहुचे | अब सभा मंडप में बैठे शकुनि ने युधिष्ठिर को चौसर का खेल खेलने के लिए आमंत्रित किया | युधिष्ठिर ने मामा शकुनी को खेलने से मना कर दिया तो मामा शकुनि उस पर उपहास करने लगे कि हार जाने के डर से युधिष्ठिर चौसर का खेल नही खेल रहा है | युधिष्ठिर उनकी बाते सुनकर क्रोधित होकर खेल खेलने के लिए हां कर दी और अपन प्रतिद्वंद्वी का नाम पुछा |
दुर्योधन ने कहा कि उसकी जगह पर मामा शकुनि खेलंगे और दाव लगाने का काम वो स्वयं करेगा | युधिष्ठिर ने इसे अनुचित बताते हुए कहा कि एक के स्थान पर दुसरे का खेलना नियमो के विरूद्ध है | लेकिन उन्होंने बार बार उसको हार जाने की बात कहकर उसको खेलने के लिए प्रेरित कर दिया | अब सारे दर्शक और दरबारी सभा में उपस्थित हो चुके थे और सभी लोग बड़े चाव से खेल देखने को उत्सुक थे |अब चौसर का खेल शुरू हुआ जिसमे सबसे पहले रत्नों आभूषण की बाजी लगी , फिर सोने जवाहरातो की , फिर रथो और घोड़ो की बाजी लगी | युधिष्ठिर इन तीनो दावो में मामा शकुनि से हार गये थे | इसके बाद धीरे धीरे खेल में युधिष्ठिर ने गाये-भैंसे , भेड़-बकरिया , दास-दसिया , रथ-घोड़े-हाथी , सेना और सैनिक , देश और देश की प्रजा भी हारते गये और सबको चौसर के खेल में खो बैठे | इतना ही नही पांड्वो को अपने आभुष्ण तक बाजी पर लगाने पड़े | अब मामा शकुनि ने पूछा “और कुछ बाकी है क्या ??” |
युधिष्ठिर ने अपने भाई नकुल की ओर इशारा करते हुए उसको भी दांव पर लगा दिया और शकुनि ने नकुल को भी चौसर में जीत लिया | इसके बाद युधिष्ठिर ने सहदेव को भी दाव लगा दिया और हार गये | अब शकुनि को संदेह हुआ कि युधिष्ठिर अब खेल खत्म ना कर दे तो उसने भीम और अर्जुन के लिए कहा कि “तुमने माद्री के पुत्रो का बलिदान तो दे दिया इसका मतलब अर्जुन और भीम माद्री के पुत्रो से ज्यादा मूल्यवान है ” | धूर्त शकुनि की चालो में आकर उसने पहले अर्जुन को डाव पर लगाया और अंत में भीम को भी दाव पर लगाकर दोनों को हार गये | अब युधिष्ठिर ने खुद को बाजी पर लगाने को कहा लेकिन शकुनी हारने वाला कहा था और अंत में उसने युधिष्ठिर को भी अधीन कर लिया |
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