CBSE BOARD X, asked by youcantseeme001, 10 months ago

chaya mt chuna hindi poem line by line explaination​


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Answered by tanushree88
7
छाया मत छूना

छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

इस कविता में कवि ने बताया है कि हमें अपने भूतकाल को पकड़ कर नहीं रखना चाहिए, चाहे उसकी यादें कितनी भी सुहानी क्यों न हो। जीवन में ऐसी कितनी सुहानी यादें रह जाती हैं। आँखों के सामने भूतकाल के कितने ही मोहक चित्र तैरने लगते हैं। प्रेयसी के साथ रात बिताने के बाद केवल उसके तन की सुगंध ही शेष रह जाती है। कोई भी सुहानी चाँदनी रात बस बालों में लगे बेले के फूलों की याद दिला सकती है। जीवन का हर क्षण किसी भूली सी छुअन की तरह रह जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। इसलिए हमें अपने भूतकाल को कभी भी पकड़ कर नहीं रखना चाहिए।

यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

यश या वैभव या पीछे की जमापूँजी; कुछ भी बाकी नहीं रहता है। आप जितना ही दौड़ेंगे उतना ज्यादा भूलभुलैया में खो जाएँगे; क्योंकि भूतकाल में बहुत कुछ घटित हो चुका होता है। अपने भूतकाल की कीर्तियों पर किसी बड़प्पन का अहसास किसी मृगमरीचिका की तरह है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चाँद के पीछे एक काली रात छिपी होती है। इसलिए भूतकाल को भूलकर हमें अपने वर्तमान की ओर ध्यान देना चाहिए।

दुविधा हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
कई बार ऐसा होता है कि हिम्मत होने के बावजूद आदमी दुविधा में पड़ जाता है और उसे सही रास्ता नहीं दिखता। कई बार आपका शरीर तो स्वस्थ रहता है लेकिन मन के अंदर हजारों दुख भरे होते हैं। कई लोग छोटी या बड़ी बातों पर दुखी हो जाते हैं। जैसे कि सर्दियों की रात में चाँद नहीं दिखने पर। यह उसी तरह है जैसे कि पास तो हो गए लेकिन 90% मार्क नहीं आए। कई बार लोग उचित समय पर कुछ प्राप्त न कर पाने की वजह से दुखी रहते हैं। लेकिन जो न मिले उसे भूल जाना ही बेहतर होता है। भूतकाल को छो‌ड़कर हमें अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए और एक सुनहरे भविष्य के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।
Answered by MAYAKASHYAP5101
1
\huge\bold{Heya !!!}

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छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी

छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;

तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,

कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।

भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

इस कविता में कवि ने बताया है कि हमें अपने भूतकाल को पकड़ कर नहीं रखना चाहिए, चाहे उसकी यादें कितनी भी सुहानी क्यों न हो। जीवन में ऐसी कितनी सुहानी यादें रह जाती हैं। आँखों के सामने भूतकाल के कितने ही मोहक चित्र तैरने लगते हैं। प्रेयसी के साथ रात बिताने के बाद केवल उसके तन की सुगंध ही शेष रह जाती है। कोई भी सुहानी चाँदनी रात बस बालों में लगे बेले के फूलों की याद दिला सकती है। जीवन का हर क्षण किसी भूली सी छुअन की तरह रह जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। इसलिए हमें अपने भूतकाल को कभी भी पकड़ कर नहीं रखना चाहिए।

यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।

प्रभुता का शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है,

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।

जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

यश या वैभव या पीछे की जमापूँजी; कुछ भी बाकी नहीं रहता है। आप जितना ही दौड़ेंगे उतना ज्यादा भूलभुलैया में खो जाएँगे; क्योंकि भूतकाल में बहुत कुछ घटित हो चुका होता है। अपने भूतकाल की कीर्तियों पर किसी बड़प्पन का अहसास किसी मृगमरीचिका की तरह है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चाँद के पीछे एक काली रात छिपी होती है। इसलिए भूतकाल को भूलकर हमें अपने वर्तमान की ओर ध्यान देना चाहिए।

दुविधा हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,

देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।

दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,

क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?

जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

कई बार ऐसा होता है कि हिम्मत होने के बावजूद आदमी दुविधा में पड़ जाता है और उसे सही रास्ता नहीं दिखता। कई बार आपका शरीर तो स्वस्थ रहता है लेकिन मन के अंदर हजारों दुख भरे होते हैं। कई लोग छोटी या बड़ी बातों पर दुखी हो जाते हैं। जैसे कि सर्दियों की रात में चाँद नहीं दिखने पर। यह उसी तरह है जैसे कि पास तो हो गए लेकिन 90% मार्क नहीं आए। कई बार लोग उचित समय पर कुछ प्राप्त न कर पाने की वजह से दुखी रहते हैं। लेकिन जो न मिले उसे भूल जाना ही बेहतर होता है। भूतकाल को छो‌ड़कर हमें अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए और एक सुनहरे भविष्य के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।
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