Hindi, asked by ganeshmahajan5713, 9 months ago

छुआछूत : एक अभिशाप विषय पर 100 से 125 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए

Answers

Answered by romiopradyumnpcmzwa
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Explanation:

भारत में सबसे बड़ा लोकतंत्र है और कई जातियों और धर्मों में विभाजित है। छुआछूत भारत के हिंदू समाज से जुडी हुई एक बहुत ही गंभीर समस्या है। छुआछूत हमारे देश के लिए एक ऐसी बीमारी है जो दूसरी समस्याओं को पैदा करती है। छुआछूत दीमक की तरह होती है जो हमारे देश को अंदर से खोखला कर रही है।

हमारे देश में अनेक समस्याएँ हैं लेकिन छुआछूत बहुत ही भयंकर और घातक सिद्ध होने वाली समस्या है। किसी विद्वान् ने कहा था कि छुआछूत इंसान और भगवान दोनों के प्रति एक पाप है। छुआछूत एक ऐसा कलंक है जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि मेरा कोई अपना देश ही नहीं है जिसे मैं अपना देश कहता हूँ उस देश में हमारे साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया जाता है।

छुआछूत का अर्थ होता है- जो स्पर्श करने योग्य न हो। जब किसी व्यक्ति के समूह या समुदाय को अस्पर्शनीय माना जाता है और उसके हाथ की छुई हुई वस्तु को कोई नहीं खाता उसे छुआछूत कहते हैं। उन लोगों के साथ कोई भी मिलजुल कर नहीं रहता और न ही उनके साथ कोई खाना खाता है।

Answered by vikasbarman272
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छुआछूत : एक अभिशाप

छुआछूत का अर्थ है किसी से दूर रहना और उसे छूना भी पाप माना गया है। समाज में नीची और छोटी-उपेक्षित जातियों के प्रति घृणा और घृणित व्यवहार। इस प्रकार का व्यवहार और कार्य हमारे देश में सदियों से चला आ रहा है। यही कारण है कि हमारे देश में रूढ़िवादिता अभी तक समाप्त नहीं हो पाई है। यह अभी भी जाति व्यवस्था पर आधारित और संचालित है। परिणामस्वरूप हमारी सामाजिक व्यवस्था के अनुसार सबसे कमजोर और उपेक्षित जाति को उपेक्षित रखने के लिए अस्पृश्य माना गया है।

हमारी जाति व्यवस्था मनुवादी व्यवस्था है। अर्थात इसकी व्यवस्था मनुमहाराज ने की थी। उनकी व्यवस्था के अनुसार हमारा पूरा समाज चार वर्णों में बंटा हुआ है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इनमें शूद्र जाति को उपरोक्त तीनों जातियों से नीची श्रेणी में रखा गया है। इस दृष्टि से इसे सबसे खराब संभव तरीके से देखा जाता है। यही कारण है। वह यह है कि उसे आज तक समाज में अपेक्षित एवं उचित स्थान नहीं मिला है। इसी आधार पर वह अत्यन्त नीच, गन्दे और निन्दनीय कर्म करने को विवश होता है। फलस्वरूप वह अपने अनुसार उन्नति एवं सुख प्राप्त नहीं कर पाता है।

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