Hindi, asked by knchinthana, 12 hours ago

छुआछूत से सिंबिंधित पांच हिंदी कविता​

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Answered by sgingle933
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Answer:

१)अंधायुग

Explanation:

“यह आधुनिकता बोध

विस्मृति के गर्भ में छिपा हुआ उनका ऐतिहासिक बोध है,

जिसके सहारे वे स्मरण करते हैं उस युग को

जब ब्राह्मणों के सहारे जीते-मरते थे राजतन्त्र

उनके शापों से आतंकित रहते थे सम्राट

जिनके आदेश होते थे ‘ब्रह्मवाक्य’

जिस पर आधारित होता था न्याय और शासन

ये कवि मुग्ध है

क्योंकि वह सवर्णों के भोगैश्वर्य का युग था

परिश्रम किये बिना ही उनको उपलब्ध था हर सुख

वे शासक थे,

सेवक थे शूद्र, भोग्या थी नारी।

वह अंधा युग था।”

2)

एक दिन एक ओबीसी मित्र आया

उसकी दुकान का दरवाज़ा

बंद देखा

और उसके दरवाज़े पर

लिख कर चला गया-

कि यहाँ ‘चमार की चाय मिलती है।”9

“मै धोबी हूँ।

बहुत दिन मैंने धोई तुम्हारी गन्दगी ताकि तुम साफ रहो

भीषण गर्मी, मूसलाधार बारिश या फिर रही हो कटकटाती सर्दी

उफ़ नहीं किया मैंने फिर भी, ताकि तैयार कर सकूँ आपकी वर्दी

* * *

जिनकी धुलाई का क़र्ज़ आज भी तुम पर बाकी है।”

3)

काटे जंगल

खोदे पहाड़

बोये खेत

फिर भी रहे भूखे

* * *

नहीं बोये काँटे, बाँटे सिर्फ

सगुन प्यार के

फिर भी रहे अछूत!”13

कल मेरे हाथ में झाड़ू था

आज कलम

कल झाड़ू से मैं तुम्हारी गन्दगी हटाता था

आज कलम से।

मैं तुम्हारे भीतर की गन्दगी धोऊँगा।

* * *

तुमने हमारे हाथ में झाड़ू पकड़ाई थी

आज परिवर्तन के लिये

तुम्हें अपने हाथ में झाड़ू लेना ही होगा

वह दिन जल्द आएगा

चेतना का सूरज

उग चुका है।”रैदास जन्म के कारणै होत न कोई नीच।

नर को नीच करि डारि है ओछे करम की कीच”

रैदास एक ही बूँद सौ, सब ही भयो वित्थार

मूरिख हैं जो करत है वरन अवरन विचार।।

रैदास एक ही नूर ते जिमि उपज्यौ संसार

ऊँच-नीच किहि विध भये ब्राह्मण और चमार।

४)

मैं आदमी नहीं हूँ स्साब

जानवर हूँ

दोपाया जानवर

जिसे बात-बात पर

मनुपुत्र मा...चो...बहन...चो...

कमीन कौम कहता है।

पूरा दिन

बैल की तरह जोतता है

मुट्ठी भर सत्तू

मजूरी में देता है।”

शोषण की अमर बेल,

दमन की महागाथा,

यातना के पिरामिड

उत्पीड़न की गंगोत्री

ऋणों का पहाड़

ब्याज का सागर

निरक्षरों के मस्तिष्क,

महाजनों की बही

रुक्कों पर अँगूठों की छाप

ऊटपटाँग

जोड़ घटा, गुणा भाग, देना

सब एक।”

सतह से उठते हुए

मैंने जाना कि

इस धरती पर किये जा रहे

श्रम में

जितना हिस्सा मेरा है

उतना हिस्सा

इस धरती के

हवा पानी और

इससे उत्पन्न होने वाले

अन्न और धन में भी।”

५)

“धर्म!

तुम भी एक हो

मेरे पैदा होने के बाद

जाति के साथ

चिपकने वाले

. . . .

तुम्हें क्यों न छोडूँ

लो

मै तुम्हें तिलांजलि देता हूँ।”

मैं तुम्हारे

झूठे धर्म पर

करता रहा गर्व

लेकिन

तुम्हारा मेरे प्रति

छिपा रहा सदैव

अपमान का भाव ही

तुम्हारी नैतिकता की छतरी में

छेद-ही-छेद हैं।”

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