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छिप छिप अश्रुबहानेवालो।
मोती व्यर्थ लुटानेवालो।
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है? नयन-सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी।
गीली उमर बनानेवालो!
डूबे बिना नहानेवालो!
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गई तो क्या है?
खुद ही हल हो गई समस्या।
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई समस्या।
रूठे दिवस मनानेवालो!
फटी कमीज़ सिलानेवालो!
कुछ दीयों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल ज़िल्द बदलती पोथी,
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सबह धप की धोती। व्याख्या लिखो।
Answers
सबसे महत्वपूर्ण होता है स्वयं का निर्माण। जीवन के प्रत्येक क्षण में, प्रतिपल , यह आवश्यक नही, और कदापि नही हो सकता की, कोई ना कोई व्यक्ति उसके साथ हो और उस व्यक्ति को सदा सानिध्य प्राप्त होता रहे । यदि हुआ तो भी वह व्यक्ति जब तक स्वयं खुद लो सम्भाल कर जीवन का युद्ध् लड़ना नही सीखता तब तक वह एक अच्छा व सच्चा योद्धा नही बन सकता ।
इस तथ्य को आगे बढ़ाते हुए इस काव्या की व्याख्या कुछ इस् प्रकार होगी की,
छिप छिप कर अश्रु अर्थात आंसू प्रवाहित करने वालों, और अपने मोतियों को व्यर्थ करने वालों , यदि तुम्हारे कुछ सपने किसी कारणवश मर गये अर्थात साकार ना हो सके और टूट गये तो इस्क यह अर्थ कदापि नही की तुम्हारा जीवन लक्ष्यहीन हो गया। इसका यह अर्थ नही की जीवन दिशाहीन व बेलगाम हो गया ।
जवानी की निंद्रा कच्ची हुआ करती है, जो शीघ्र ही टूट जाती है।
सपने सिर्फ नयनो में भरे हुए पानी की भान्ति हैं, जो तुरंत ही नींद खुलने पर ठहर ना पाने के कारण टूट जाता है, अर्थात गिर जाता है।
और फिर से पुन: भर जाता है।
अपनी इस उम्र को व्यर्थ करने वालों , अभी तुम सपनो में डूबे ही नही, उसमे वाकयी गोते लगाये ही नही, और महज़ उसकी 2 बूंद गिरने से इस कदर विचलित हो गये?
यदि कुछ पानी बह भी जाए तो मौसम की रूत खतम नही होती,
सावन का अन्त नही होता।
यदि माला बिखर गयी तो यही समझना चाहिये की समस्या का सामाधन तो खुद ब खुद हो गया क्युकी वह चीज़ वास्तव में तुम्हारे हिस्से की थी ही नही, क्युकी उससे भी कयी बड़ी मंजिल तुम्हारा बेसब्री से इन्तज़ार कर रही है, इस प्रकार तुम अब पूरे मन से अपने नये लक्ष्य पे ध्यान दे पाओगे और एक नये सिरे से शुरुआत कर के खुद को तलाशने व तराशने में कामयाब हो पाओगे।
महान्कवी हरिवंश राय बच्चन जी ने भी कहा है कि "यदि मन का हो तो वो अच्छा होता है, पर जो मन का ना हो, तो वो तो और भी अच्छा होता है, क्युकी उसमे इश्वर की कोई मर्ज़ी छिपी होती है"।
अगर आपके वे अश्रु जो उस हार व दुख से उपजी पीड़ का फल थे, निलाम हो गये, अर्थात बह गये तो यही समझना चाहिये की अब समस्या पूरी तरह से हल हो चुकी है क्युकी यदि ऐसा ना हुआ होता तो वे अश्रु पत्थर बनकर
आपके हृदय को पसीज देते।
रूठ्ठे दिवस अर्थात खफा दिनो को मनाने वालो, और फटी हुई कमीज़ , सिलानेवालों, अर्थात अपने कड़वे अतीत का परित्याग करने के बजाये उस्पे मरहम लगाने वालों,
सिर्फ इतना ही कहना है तुमसे की कुछ दियों के बुझने से आंगन नही मरा कर्ता है अर्थात कुछ ख्वाबों के टूटने से जीवन की रोशनी व उसका उल्लास कम नही होता है।
यहां पर, अर्थात , इस संसार में कभी कुछ व्यर्थ नही जाता है।
केवल मुकाम व लक्ष्य परिवर्तित होते हैं।
जिस प्रकार रात्रि अपनी चांदनी को उतार कर सुबह के धूप की सुनहरी चादर डालती है।
hope it helps!