छापा कविता का भावार्थ कक्षा दसवि
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कविता
पत्ते की तरह छापे का
सिर लिए वह झुकी है
छापे पर
धूप उसकी देह तक
चली आई
छापे को उतारती वह कपड़े पर
कामना में उतरती है याद
देह में प्रेम
वह छापे से सिर नहीं उठाती।
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छापा कविता का भावार्थ कक्षा दसवि
छापा कविता ओमप्रकाश आदित्य के द्वारा लिखी गई है| कवि ने कविता में आयकर विभाग के छापे के माध्यम से आम आदमी की आर्थिक स्थिति , छापा मारने वालों की कार्य प्रणाली को दर्शाया है|
एक लेखक के दिन छापा पड़ जाता है| वह छापा छोटा नहीं बड़ा था| घर में बहुत से लोग आकर कहने और बोलने लगे की सोना कहाँ है सोना दो| लेखक कहते है सोना मेरे आंखों में है| मै बहुत दिनों से सोया नहीं हूँ| छापे वाले कहते है स्वर्ण कहाँ है, लेखक कहते है तो मेरे काव्य में बिखरे है, मैं कहाँ से दूँ|
वह गुस्से से बोलते है जो आपने गलत तरीकों से कमाया हुआ पैसा दो| लेखक ने मुसकुरा के बोले मेरी कविताओं में है , मिल जाएगा तो ले लो| छापे वाले बोलते है चांदी कहाँ है , लेखन कहते है मेरे बालो में , मेरे बाल चांदी की रह सफेद हो रहे है| अधिकारी बोलते है अच्छा नोट कहाँ है ? लेखक कहते है कि जब परीक्षा के एक महीने पहले मनाता हूँ| अधिकारों को गुस्सा आता है बोल रहे है कि हमारा मतलब है मुद्रा है से है| लेखक कहते है कि आप मुद्रा मेरे मुख में देख लीजिए|
अंत में अधिकारी लेखक के सारे घर की तलाशी लेने लगते है , उन्हें लेखक के घर में कुछ नहीं मिलता है| वह दुखी और निराशा के साथ वापिस जाने लगे| लेखक कहते है कि आपको कुछ नहीं मिला अब मुझे तो कुछ दे कर जाओ |