छोटी बड़ी कई झीलें हैं उनके श्यामल नींद चलते हैं कमल तल देशों से आकर आवाज की उम्र में अंकुर टिकट नंदू दूर-दूर खोजते हंसों को तिनके देखा देखा है बादल को घिरते देखा है व्याख्या
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Explanation:
झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारो तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं।
देश की आईटी राजधानी कहे जाने वाले बंगलुुरु में पिछले दिनों एक दृश्य ने शहरवासियों समेत पूरे देश को चिन्ता में डाला है। यहाँ की बेल्लनदर (बेलंदूर) झील में आग लगने की घटनाएँ हुईं। ऐसा नजारा इस झील में कई बार उपस्थित हो चुका है। एक अन्य झील येमलूर में भी ऐसी ही घटना हुई थी।
झील से उठते धुएँ से शरहवासियों का जीना दूभर हो गया था। उस झील से भी गहरा धुआँ निकलने और छिटपुट आग लगने की घटनाओं के समाचार मिले थे। यही नहीं, इसी शहर की एक अन्य झील उल्सूर में एक ही दिन में हजारों मछलियों की मौत भयानक प्रदूषण की वजह से हो गई थी। झील में यह प्रदूषण नजदीक स्थित एक बाँध में आई दरार से रिसते पानी के जरिए फैला था। इस प्रदूषित पानी के मिलने से उल्सूर झील के पानी में अॉक्सीजन की मात्रा खतरनाक ढंग से कम हो गई, जिससे इसमें मौजूद जल-जीवों के लिये साँस लेना मुश्किल हो गया और वे मर गए।
बंगलुरु की झीलों की घटनाएँ ऊपर से छोटी अवश्य दिखती हैं पर ये घटनाएँ असल में उन जलस्रोतों की उपेक्षा दर्शाती हैं जो सदियों से हमारे बीच रहे हैं और पानी ही नहीं, जमीन को उपजाऊ बनाने और जलवायु परिवर्तन में उनकी एक निश्चित भूमिका है। कभी शहर-कस्बों की शान कहे जाने वाले तालाब, बावड़ी, झील और वेटलैंड कहे जाने वाले ऐसे ज्यादातर जलस्रोत लोगों की लापरवाही और सरकारी उपेक्षा के कारण दम तोड़ रहे हैं।
पिछले साल इससे सम्बन्धित एक आँकड़ा उत्तर प्रदेश के बारे में आया था, जहाँ आरटीआई से मिली सूचना में बताया गया कि बीते 60-70 वर्षों में 45 हजार तालाबों-झीलों पर अवैध कब्जा करके उनका वजूद ही खत्म कर दिया गया। आरटीआई सेे पता चला कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही एक लाख 11 हजार 968 तालाबों पर अतिक्रमण करके लोगों ने जमीन पर तरह-तरह के निर्माण करके उनके अस्तित्व के लिये खतरा पैदा कर दिया, हालांकि इनमें से 66,561 तालाबों को बाद में कब्जे से मुक्त कराया गया। पर क्या कर्नाटक, क्या दिल्ली और क्या मध्य प्रदेश-हर जगह तालाब-झील रूपी जमीनों पर कब्जे की होड़ चलती रही है।