छूटी न शिशुता की झलक, झलक्यो यौवन अंग। दीपति देह दुहून मिलि, दिपति तापता रंग ।। लाल अलौकिक लरिकई, लखि लखि सखी सिंहति । आजकाल में देखियत, उर उकसोंहीं
भाँति ॥
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