छात्र असंतोष पर निबंध |
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निवंध
छात्र असंतोष
छात्र असंतोष क्या है– निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए छात्रों से अधिक राशि वसूली जाती हैं. सम्पन्न परिवारों के बच्चे तो अधिक शुल्क देकर निजी शिक्षण संस्थानों में मनपसन्द पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने में सफल रहते हैं, किन्तु निर्धन छात्रों के सामने धन के आभाव में पढ़ाई छोड़ने या पारम्परिक सस्ते पाठ्यक्रमों में प्रवेश के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता. इस स्थिति में उनके भीतर स्वा भा विक रूप से शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना जागृत हो जाती हैं. और वह सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र को कोसने लगता हैं.
एक छात्र में इस तरह के असंतोष के उपजने से दूसरे छात्र उसका समर्थन करने लगते हैं. यह अवस्था बड़ी विकट होती हैं. बहर हाल सूचना प्रोद्योगिकी के इस उन्नत युग में भी व्यावसायिक शिक्षा की अपेक्षित व्यवस्था अब तक भारत में नहीं हो पाई हैं. पारम्परिक शिक्षा प्राप्त कर उच्च उपाधि धारण करने के बावजूद अधिकतर छात्र किसी विशेष काम लायक नहीं रहते हैं. इसके कारण शिक्षित बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं. भारत में हर वर्ष लगभग पांच लाख से अधिक छात्र अभियांत्रिकी एवं प्रोद्योगिकी की शिक्षा प्राप्त करते हैं. इनमें से अधिकतर योग्य अभियंता नहीं होते. इसलिए उनको डिग्री के अनुरूप नौकरी नहीं मिल पाती. इस स्थिति में छात्रों का असंतुष्ट होना स्वाभाविक ही हैं.
छात्र असंतोष कारण और समाधान
शिक्षा के निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थाओं की बाढ़ तो आ गई हैं. किन्तु इन संस्थानों में छात्रों का अत्यधिक शोषण होता हैं. यहाँ शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव होता हैं. छात्रों द्वारा विरोध किये जाने पर उन्हें संस्थान से निकाले जाने की धमकी दी जाती हैं. शिक्षण संस्थानों को चलाने वाले व्यवसायियों की पहुच ऊपर तक होती हैं. इसलिए उनकी शिकायत का भी कोई परिणाम नहीं निकलता हैं. अतः छात्रों के पास कुंठित होकर अपनी किस्मत कोसने के आलावा कोई और रास्ता शेष नहीं बचता
राजकीय शिक्षण संस्थानों में भी शिक्षकों एवं कर्मचारियों की मनमानी का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता हैं. शिक्षक एवं शिक्षण संस्थान के कर्मचारी अपनी बात मनवाने के लिए हड़ताल पर चले जाते हैं. इससे शिक्षा तो बाधित होती ही हैं, छात्रों का बहुमूल्य समय भी नष्ट होता हैं. विरोध या बहिष्कार करने की स्थिति में उन्हें अनुतीर्ण करने की धमकी दी जाती हैं. उच्च शिक्षण संस्थानों में ऐसी स्थिति छात्र असंतोष का कारण बनती हैं.
शिक्षा जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया हैं इसलिए समाज एवं देश के हित के लिए उसके उद्देश्य का निर्धारण आवश्यक है. चूँकि समाज एवं देश में समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं. इसलिए शिक्षा के उद्देश्यों में भी समय के अनुसार परिवर्तन होते हैं. उदहारण के लिए वैदिक काल में वेदमन्त्रों की शिक्षा को पर्याप्त कहा जाता था, किन्तु वर्तमान काल में मनुष्य के विकास के लिए व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए.
यदपि पिछले कुछ वर्षों में देश में व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति देखने को मिली हैं, किन्तु यह अभी तक पर्याप्त नहीं हैं. इस कारण अधिकतर छात्र पारम्परिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए बाध्य हैं. ये पाठ्यक्रम वर्तमान समय की मांग के अनुरूप नहीं हैं. इसलिए ऐसे पाठ्यक्रमों से उच्च शिक्षा प्राप्त छात्रों के सामने भविष्य में रोजगार प्राप्त करने की समस्या खड़ी रहती हैं. इसलिए उनका ऐसी शिक्षा व्यवस्था से विश्वास उठना स्वाभाविक हैं.
कुछ स्वार्थी राजनितिक दल छात्रों को अपने साथ मिलाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं. इसलिए वे शिक्षण संस्थानों में राजनीती को बढ़ावा देते हैं. इसके कारण देश के कुछ प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान राजनीति के अखाड़े का रूप लेते जा रहे हैं ऐसी स्थिति में छात्रों की पढ़ाई बाधित तो होती ही हैं, इस स्थिति के कारण छात्रों के शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना भी उत्पन्न होती हैं.
छात्र अशांति/ छात्र असंतोष के कारण: इस तरह बेरोजगारी का डर, पारम्परिक शिक्षा का वर्तमान स मय के अनुरूप न होना, व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थानों का अभाव, शिक्षण संस्थानों को राजनीति का केंद्र बनाया जाना,शिक्षकों एवं कर्मचारियों का कर्तव्यों से विमुख होना निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी इत्यादि भारत में छात्र असंतोष के कारण हैं.
छात्र ही देश के भविष्य होते हैं, यदि उनका भला न हो पाया, यदि वे बेरोजगारी का दंश झेल रहे हो, यदि उनके साथ नाइंसाफी हो रही हो, यदि उनके भविष्य से खिलवाड़ हो रहा, तो देश का भला कैसे हो सकता हैं. निसंदेह इसके कारण देश की आर्थिक ही नहीं सामाजिक एवं राजनीतिक प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इसलिए समय रहते हुए इस समस्या का समाधान करना जरुरी हैं.
छात्र असंतोष को दूर करने के लिए सबसे पहले देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर इसे वर्तमान समय के अनुकूल करना होगा , इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों की स्थापना पर्याप्त संख्या में करनी होगी. इसके अलावा राजनीति को शिक्षा से दूर ही रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इन संस्थाओं में शिक्षक एवं कर्मचारी अपनी मन मानी से छात्रों का भविष्य चौपट न कर पाए.
इसके अलावा ऐसी निजी शिक्षण संस्थाएं जहाँ छात्रों एवं अभिभावकों का अत्यधिक शोषण हो रहा हो, वहां उचित कार्यवाही करते हुए उन्हें शोषण से बचाया जाए. इसके लिए शिक्षकों को उनके कर्तव्यों का अहसास कराना होगा. इन सबके अतिरिक्त छात्रो को रचनात्मक कार्यो की ओर मोड़कर भी छात्र असंतोष को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं.
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