Hindi, asked by yasminkhatoon726, 3 days ago

छोटा था पर सुखकर्ता वह
तरुवर का मेरा आवास
उसमें मैं ही मिलता था मुझको
जग के सभी सुखों का भाग
सदा प्रसन्नचित रहता था
होता कभी ना दुखी उदास
चिंताहीन रहा करता था
अरुणोदय होते ही उठकर
रवि का करता था स्वागत।
उसे जगाता जो सोया हो
तरु के नीचे अभ्यागत
चारे की चिंता में उड़ता
जब होता था सूर्योदय
करके याद गगन विचरण की
होता है संतप्त ह्रदय।।
दिनभर नगमे जल पर थल पर
विचरण करता सही प्रमोद
हृदय नाच उठता था नग में
आते थे जब प्रथम पयोद
कैसा सुखमय वह जीवन था
जब मैं रहता था स्वाधीन
नहीं जानता था होते हैं
कैसे जग में जीव मलीन?
हुआ हाय! पिंजरे में पड़कर
कैसा भीषण परिवर्तन।
हा दुरदेव लूटा दुखिया का
स्वतंत्रता सा प्राणधन।।
सोने के पिंजरे में भी यदि
करना पड़े स्वर्ग में वास
नाटक तुल्य मुझको वह होगा
बंद करके औरों का दास
- बालकृष्ण राव
PLEASE ANSWER IF YOU WILL ANSWER THEN I WILL GIVE YOU MANY POINTS AND MARK YOU BRAINLIEST​

Attachments:

Answers

Answered by jitenderjakhar
1

Answer:

1 पिंजरे मे बन्द होने पर पक्षी अपने स्वाधीनता के जीवन के बारे मे सोचता है

2 सोने के पिंजरे कि तुलना नाटक से कि गई है क्योंकि पक्षी अब पहले कि तरह आज़ाद नहीं रहा

3 अभयागत पेड़ के नीचे बैठे अतिथि को कहा गया है जो वाह पर विश्राम करने के लिए बैठा है

Answered by anishkumarsingh2022
0

Answer:

छोटा था पर सुखकर्ता वह

तरुवर का मेरा आवास

उसमें मैं ही मिलता था मुझको

जग के सभी सुखों का भाग

सदा प्रसन्नचित रहता था

होता कभी ना दुखी उदास

चिंताहीन रहा करता था

अरुणोदय होते ही उठकर

रवि का करता था स्वागत।

उसे जगाता जो सोया हो

तरु के नीचे अभ्यागत

चारे की चिंता में उड़ता

जब होता था सूर्योदय

करके याद गगन विचरण की

होता है संतप्त ह्रदय।।

दिनभर नगमे जल पर थल पर

विचरण करता सही प्रमोद

हृदय नाच उठता था नग में

आते थे जब प्रथम पयोद

कैसा सुखमय वह जीवन था

जब मैं रहता था स्वाधीन

नहीं जानता था होते हैं

कैसे जग में जीव मलीन?

हुआ हाय! पिंजरे में पड़कर

कैसा भीषण परिवर्तन।

हा दुरदेव लूटा दुखिया का

स्वतंत्रता सा प्राणधन।।

सोने के पिंजरे में भी यदि

करना पड़े स्वर्ग में वास

नाटक तुल्य मुझको वह होगा

बंद करके औरों का दास

- बालकृष्ण राव

Similar questions