Hindi, asked by kolvikram0, 4 months ago

छंद किसे कहते हैं एवं उसके प्रकार बताइए​

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Answered by rishapink454214
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Answer:

वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'

छंद के प्रकार :-

1. मात्रिक छंद

2. वर्णिक छंद

3. वर्णिक वृत छंद

4. मुक्त छंद

1. मात्रिक छंद :- मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। अथार्त जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। जिनमें मात्राओं की संख्या , लघु -गुरु , यति -गति के आधार पर पद रचना की जाती है उसे मात्रिक छंद कहते हैं।

जैसे :- ” बंदऊं गुर्रू पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।”

मात्रिक छंद के भेद :-

1. सममात्रिक छंद

2. अर्धमात्रिक छंद

3. विषममात्रिक छंद

1. सममात्रिक छंद :- जहाँ पर छंद में सभी चरण समान होते हैं उसे सममात्रिक छंद कहते हैं।

जैसे :- “मुझे नहीं ज्ञात कि मैं कहाँ हूँ

प्रभो! यहाँ हूँ अथवा वहाँ हूँ।”

2. अर्धमात्रिक छंद :- जिसमें पहला और तीसरा चरण एक समान होता है तथा दूसरा और चौथा चरण उनसे अलग होते हैं लेकिन आपस में एक जैसे होते हैं उसे अर्धमात्रिक छंद कहते हैं।

3. विषय मात्रिक छंद :- जहाँ चरणों में दो चरण अधिक समान न हों उसे विषम मात्रिक छंद कहते हैं। ऐसे छंद प्रचलन में कम होते हैं।

2. वर्णिक छंद :- जिन छंदों की रचना को वर्णों की गणना और क्रम के आधार पर किया जाता है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं।

वृतों की तरह इनमे गुरु और लघु का कर्म निश्चित नहीं होता है बस वर्ण संख्या निश्चित होती है। ये वर्णों की गणना पर आधारित होते हैं।जिनमे वर्णों की संख्या , क्रम , गणविधान , लघु-गुरु के आधार पर रचना होती है।

जैसे :- (i) दुर्मिल सवैया।

(ii) ” प्रिय पति वह मेरा , प्राण प्यारा कहाँ है।

दुःख-जलधि निमग्ना , का सहारा कहाँ है।

अब तक जिसको मैं , देख के जी सकी हूँ।

वह ह्रदय हमारा , नेत्र तारा कहाँ है।

3. वर्णिक वृत छंद :- इसमें वर्णों की गणना होती है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु -गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है। इसे सम छंद भी कहते हैं।

जैसे :- मत्तगयन्द सवैया।

4. मुक्त छंद :- मुक्त छंद को आधुनिक युग की देन माना जाता है। जिन छंदों में वर्णों और मात्राओं का बंधन नहीं होता उन्हें मुक्तक छंद कहते हैं अथार्त हिंदी में स्वतंत्र रूप से आजकल लिखे जाने वाले छंद मुक्त छंद होते हैं। चरणों की अनियमित , असमान , स्वछन्द गति और भाव के अनुकूल यति विधान ही मुक्त छंद की विशेषता है। इसे रबर या केंचुआ छंद भी कहते हैं। इनमे न वर्णों की और न ही मात्राओं की गिनती होती है।

जैसे :- ” वह आता

दो टूक कलेजे के करता पछताता

पथ पर आता।

पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक ,

चल रहा लकुटिया टेक ,

मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को

मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता

दो टूक कलेजे के कर्ता पछताता पथ पर आता।

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