Hindi, asked by westerngarden03, 8 months ago

छंद पहचान कर लक्षणों को लिखिए।
१) परमा खड़ा बज़ार में, ताकै चारों ओर।
ये नर लड़की ताक के, कभी न होता बोर।
२) यों परमा सुख होत हैं, स्टॉकर के संग।
हर फोटो देखत ह्रदय, बाजत ढोल मृदंग।
३) साईं इतना दीजिये, जासै कुटुम दिखाय।
मैं भी सिंगल ना रहूँ, खर्चा भी बच जाय।
४) इन्फी प्रोफाइल देख के दिया स्टॉकर रोय।
उसकी नज़र के सामने, सिंगल बची न कोय।
५) सिंगल देखन मैं चला, सिंगल न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझ-सा सिंगल न कोय।
६) बंदी ढूंढत जुग गया, फिरा न मनका फेर।
परमा जो अब ढूंढ़ ली, गई कहीं मुख फेर।
७) स्टॉक कर-कर जग मुआ, कमिटेड हुआ न कोय।
दुइ आखर ‘डूड’ का, पढ़े सो कमिटेड होय।
८) ‘परमा ‘वृक्ष -कुटुंब की ,बेटी है हरियाल ।
पतझड़ बाद जो न रहे ,सूनो रूख बिहाल ।–परमानं​

Answers

Answered by narayayadav
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Answer:

वाङ्मय में सामान्यतः लय को बताने के लिये छन्द शब्द का प्रयोग किया गया है।[1] विशिष्ट अर्थों या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को छ्न्द कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है। छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं और जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द इत्यादि। इस प्रकार की व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णों की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों को भी निर्धारित किया गया है जिनका पालन कवि को करना होता है। इस दूसरे अर्थ में यह अंग्रेजी के 'मीटर'[2] अथवा उर्दू-फ़ारसी के 'रुक़न' (अराकान) के समकक्ष है। हिन्दी साहित्य में भी छन्द के इन नियमों का पालन करते हुए काव्यरचना की जाती थी, यानि किसी न किसी छन्द में होती थीं। विश्व की अन्य भाषाओँ में भी परम्परागत रूप से कविता के लिये छन्द के नियम होते हैं।

छन्दों की रचना और गुण-अवगुण के अध्ययन को छन्दशास्त्र कहते हैं। चूँकि, आचार्य पिंगल द्वारा रचित 'छन्दःशास्त्र' सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है जिसे 'पिंगलशास्त्र' भी कहा जाता है।[3] यदि गद्य की कसौटी ‘व्याकरण’ है तो कविता की कसौटी ‘छन्द’ है। पद्यरचना का समुचित ज्ञान छन्दशास्त्र की जानकारी के बिना नहीं होता। काव्य और छन्द के प्रारम्भ में ‘अगण’ अर्थात ‘अशुभ गण’ नहीं आना चाहिए।

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