छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग।
जाके संग कुबुद्धि उपजै, परत भजन में भंग।
काम क्रोध मद लोभ मोह में, निसि दिन रहत उमंग।
कहा भयो पय पान कराये, बिष नहिं तपत भुजंग।
कागहि कहा कपूर खवाये, स्वान न्हवाये गंग।
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकत भूषन अंग।
पाहन पतित बान नहिं भेदत, रीतो करत निषंग।
सूरदास खल कारी कामरी, चढ़े न दूजो रंग।।
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छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग । ,..." में बताया गया है कि- "व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का परिवार तो अच्छा होता ही है, साथ ही उसका प्रभाव समाज व राष्ट्र पर भी गहरा पड़ता है। मनुष्य जैसी संगति में रहता है, उस पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है। मानव एक समाजिक प्राणी है उसे इस समाज में जिन्दा रहने और अपनी जरूरतों को पूरा करने करने के लिए दूसरों का संगति करता है। यह कभी भी नहीं हो सकता है कि मनुष्य कुसंगति के प्रभाव से बच सकता है? संगति का बच्चों पे गहरा प्रभाव पड़ता है| अतः हरि भक्तों को हरि विमुखों का संघ नहीं करना चाहिए। इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान बताया गया है। जैसे कि- सत्संगति शब्द से अभिप्राय है अच्छे,व्यक्ति योगियों के साथ, कुसंगति का प्रभाव, संगत का प्रभाव, जीवन में अच्छे मित्रों की संगति का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है, सत्संगति पर निबंध इन हिंदी,कुसंगति का प्रभाव पर कहानी, संगति पर दोहे, सत्संगति का महत्व, सत्संगति के लाभ, सत्संगति क्या है, सत्संगति सब विधि हितकारी, संगति का अर्थ, संगति का असर in हिंदी, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें।
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