Hindi, asked by deepakkumaryadavin, 19 days ago

छायावादी काव्य की सौंदर्य चेतना

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Answered by Shinchan455
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Answer:

सौंदर्य और प्रेम का चित्रण छायावादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्ति है । इस काव्य में प्रकृति पर चेतना का आरोप या मानवीकरण किया गया है । प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा आदि छायावाद के सभी प्रमुख कवियों ने प्रकृति का नारी रूप में चित्रण है और सौन्दर्य एवं प्रेम की अभिव्यक्ति की है ।

Explanation:

Answered by hemantsuts012
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छायावाद हिंदी साहित्य के रोमांटिक उत्थान की वह काव्य-धारा है जो लगभग ई.स. 1918 से 1936 तक की प्रमुख युगवाणी रही ।

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छायावादी काव्य की सौंदर्य चेतना

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छायावादी काव्य की सौंदर्य चेतना

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छायावादी काव्य की सौंदर्य चेतना -

छायावाद हिंदी साहित्य के रोमांटिक उत्थान की वह काव्य-धारा है जो लगभग ई.स. 1918 से 1936 तक की प्रमुख युगवाणी रही ।जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।

जयशंकर प्रसाद के यहाँ हम छायावादी सौंदर्य चेतना का प्रतिनिधि रूप देख सकते हैं। 'झरना', 'लहर', 'आँसू' व 'कामायनी' के आधार पर उनकी सौंदर्य चेतना के मुख्य तत्त्वों का उद्घाटन किया जा सकता है।

छायावाद के अन्य कवियों की भाँति प्रसाद के यहाँ भी सौंदर्य चेतना की अभिव्यिक्ति कई स्तरों पर दिखती है सुंदरता जीवन के सुखात्मक पक्षों में भी है और दुखात्मक पक्षों में भी इसी प्रकार, इसमें प्रकृति भी सुंदर है, मानव भी, नारी भी और हृदय में उठने वाले भाव भी, परंतु मानव सौंदर्य सर्वोच्च स्तर पर है। प्रसाद के यहाँ सौंदर्य के भाव पक्ष को केंद्रीय महत्त्व दिया गया है। नारी का सौंदर्य भी उन्हें सुंदर भावों की अभिव्यक्ति ही प्रतीत होता है।

#SPJ3

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