छत्तीसगढ़ में गुप्त काल में प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त विवरण दीजिए ।
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छत्तीसगढ़, जो दक्षिण-कौसल के नाम से जाना जाता था, यहाँ मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था।
मौर्यकाल-
ह्मवेनसांग, प्रसिद्ध चीनी यात्री का यात्रा विवरण पढ़ने पर हम देखते हैं कि अशोक, मौर्य सम्राट, ने यहाँ बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था।
सातवाहन काल -
यह काल 200 ई० पूर्व से 60 ई० पूर्व के मध्य का है। सातवाहन वंश के राजा खुद को दक्षिण पथ का स्वामी कहते थे।
वकाटक वंश -
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में वकाटक वंश का एक ताम्रपत्र मिला था।
गुप्तवंश -
समुद्रगुप्त थे गुप्त वंश के बहुत ही प्रभावशाली शासक। छत्तीसगढ़ के बानबरद नामक जगह में गुप्तकाल के सिक्के मिले हैं।
राजर्षितुल्य कुल -
छत्तीसगढ़ के आरंग में कुछ ताम्रपत्र मिले हैं जिसमे राजर्षितुल्य वंश के शासक भीमसेन (द्वितीय) का उल्लेख है। राजर्षितुल्य नाम के राजवंश का शासन दक्षिण-कौसल में पाँचवीं सदी के आस पास था।
शरभपुरीय वंश -
इस वंश की राजधानी शरभपुर में थी। इस वंश के संस्थापक शरभ नाम के राजा थे। उनके कारण ही उस जगह का नाम शरभपुर पड़ा। इतिहास के कई अध्येता यह मानते हैं कि सम्बलपुर (जो अब उड़ीसा में है) ही शरभपुर था। कुछ लोगों का यह मानना है सिरपुर ही शरभपुर कहलाता था। छठी सदी के अंत में शरभपुरीय राजवंश को पाण्डुवंशियों ने पराजित किया था।
पाण्डुवंश -
पाण्डुवंशियों ने शरभपुरीय राजवंश को पराजित करने के बाद श्रीपुर को अपनी राजधानी बनाया। ईस्वी सन छठी सदी में दक्षिण कौसल के बहुत बड़े क्षेत्र में इन पाण्डुवंशियों का शामन था।
नलवंशः दक्षिण -
कौसल के कुछ जगहों में नलवंश का शासन था। नल नामक राजा से नल वंश का आरम्भ हुआ। इस वंश का समय 700 ई. है। नलवंशी शासक का मुख्य केन्द्र था बस्तर।
कलचुरि वंश :
कलचुरियों की वंशावली कोकल्लदेव से आरम्भ होती । कोकल्लदेव के वंशज कलचुरी कहलाये। कलचुरि हैहयों की एक शाखा है।