Chhattisgarh ka sabse purana khel kon sa hai
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यहाँ कुछ खास खेल है, जैसे खेलते वक्त गीत गाया जाता है।
एक तो डोन्डी-पोहा-खेल का नाम है। इस खेल में एक दल रहता है। मैदान में एक गोल खींचा जाता है। दल में से कोई एक लड़का/लड़की घेरे के बाहर खड़ा रह जाता है। औरा बाकी सब घरे के अन्दर रह जाते हैं। घेरे के बाहर खड़ा लड़का बहुत ही गीत के लय में कहता है -
'कुकुरुस कुं'-
घेरे के अन्दर सब लड़के कहते है
'काकर कुकड़ा'
घेरे के सब लड़के कहते है -
'काय चारा'
उत्तर मिलत है - 'कन की पोहा'
अन्दर के लड़के - 'का खेल?'
बाहर का लड़का - 'डोन्डी पोहा'
अन्दर के लड़के - 'कोन चोर?'
बाहर का लड़का - 'रामू'
इस तरह से ये खेल खेला जाता है और घेरे के बाहर खड़ा लड़का किसी का भी नाम ले लेता है जैसे - रामु, शामु.......
एक प्रसिद्ध खेल है - बहुत ही लोकप्रिय खेल है - भौंड़ा - भौड़ा धुमाते है और गाया जाता है -
लावन मा लोल लोल
तिखर मा झोल झोल
जब तक भौंड़ा स्थिर होता है, तब तक ये गीत गाते जाते है।
फिर एक खेल है खुदुआ - जिसे और जगह कबड्डी कहा जाता है, उसे यहाँ खुदुआ कहा जाता है। इसमें गीत है -
खुदुआ खुदुआ
नागर के पत्ती
ढेरवा गोन्दा
तोर चवेती चवेती
अन्दन बदन चौकी चरिहारी बेल
मारो झोटका खुते तेल
तीन ढुरवा तिल्ली तेव
घर घर बचाये तेल
इस तरह खेतलते है और गाते है, और खेल-खेल में अगर कोई बालक खेलना नहीं चाहता है तो दूसरे उसके सिर के कसम रख देते है - अगर वह लड़का उस सर के कसम के महत्ता को स्वीकार नहीं करता और खेलने के लिए राज़ी नहीं होता तब एक लड़का कहता है -
नदीयाँ के तीर तीर
पातल सूर
नी मानले तो
अपनी बहनी ला पुछ
इस तरह से एक दूसरे को सुनाते है - और ये खेल खेलते है।
माधवराव सप्रेजी ने पत्रकारिता का शुरुआत यहीं से की थी। 'छत्तीसगढ़ मित्र' नाम की पत्रिका उन्होंने, दैनिक समाचार पत्र उन्होंने उस समय निकाला था जब यहाँ प्रिर्जिंन्टग प्रेस का भी अभाव था। लोक सोच नहीं सकते थे कि यहाँ से कोई हिन्दी की सेवा कर सकता है। न केवल उन्होंने हिन्दी की सेवा की बल्कि पत्रकारिता को भी एक नये स्तर पर पहुँचाया। जो आज भी एक कीर्तिमान बना हुआ है। टोकरी भर मिट्टी जो कहानी थी उनकी, यहीं रह कर लिखी है। जो हिन्दी की सर्वप्रथम कहानी के रुप में मानी जाती है।
आचार्य पदमलाल पुन्नालाल बक्शी जी जो सरस्वती के सम्पादक रहे हुये हैं और सरस्वती के साधन करहे हुये हैं, वह इसी छत्तीसगढ़ के माटी के पुत्र हैं और खैड़ागढ़ से उन्होंने शरुआत की थी, जब उन्होंने सरस्वती का सम्पादन आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से ग्रहण किया था तो सभी लोकों को शक हुआ था कि पता नहीं वह सम्पादन अच्छे से कर पायेंगे या नहीं - याने लोगों को यहाँ के लोगों पर शक था - लेकिन उस शक को उन्होंने बहुत ही अच्छे से दूर किया। इतने अच्छे से उन्होंने सरस्वती का सम्पादन किया कि उनके कार्यकाल में सरस्वती खूब नाम कमाई। और चारों ओर इसका यश फैला और लोगों ने छत्तीसगढ़ का लोहा माना। तो इस तरह से यहाँ पर लोग जुड़े रहे, साहित्य से, रचना करते रहे। बक्शी जी ने कहानियाँ, लघु कथाओं और लोक कथाओं पर बहुत काम किया था। उनके निबन्ध एक से एक प्रसिद्ध हैं। उनका काम छत्तीसगढ़ी के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
जितने प्रख्यात रचनाकार है हिन्दी साहित्यक के, वे किसी न किसी तरह से जुड़े रहे। मुक्तिबोध, हिन्दी साहित्य में, श्रेष्ठतम कवि के रुप में जिनका नाम लिया जा सकता है, वह राजनांदगांव में रहकर ही, कालेज में प्रोफेसर थे, उस समय उन्होंने अपनी जो तमाम रचनायें हैं, छत्तीसगढ़ की माटी ने ही उन्हें यह अवसर प्रदान किया कि वह उन रचनाओं की रचना कर सकें।
इस तरह छत्तीसगढ़ ने रचनाकारिता को, पत्रकारिता को सर्वश्रेष्ठ अवसर प्रदान किया है। ये अलग बात है कि दिल्ली से राजधानी से दूर होने के कारण यहाँ की रचनाकारों को इतना प्रकाश नहीं मिल पाया। यही एक दुख की बात है, पर अब नया राज्य बनने से लोगों को पर्याप्त स्थान मिलने लगा है।