Chhattisgarh ke kisi Ek Kavi ya lekhak ke bare mein Jankari ektra kre
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सुन्दरलाल शर्मा, नाट्यकला, मूर्तिकला व चित्रकला में पारंगत विद्वान थे । 'प्रहलाद चरित्र', 'करुणा-पचीसी' व 'सतनामी-भजन-माला' जैसे ग्रंथों व के वह रचयिता है। इनकी 'छत्तीसगढ़ी-दीन-लीला' छत्तीसगढ़ का प्रथम लोकप्रिय प्रबंध काव्य है। छत्तीसगढ़ की राजनीति व देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में उनका ऐतिहासिक योगदान है। पं. सुन्दरलाल शर्मा का जन्म सन 1881 में छत्तीसगढ़ प्रांत के राजिम के पास चमसूर ग्राम में हुआ था। उन्होंने लगभग 18 ग्रन्थ लिखे जिनमें 4 नाटक, 2 उपन्यास तथा शेष काव्य रचनाएँ है । राजिम में 1907 में संस्कृत पाठशाला व रायपुर में सतनामी-आश्रम की स्थापना की तथा 1910 में राजिम में प्रथम स्वदेशी दुकान व 1920 के कण्डेल सत्याग्रह के सूत्रधार थे। 28 दिसंबर, को आपका स्वर्गवास हुआ।
राजिम के पास एक गांव है जिसका नाम है चमसुर । उसी चमसुर गांव में पं. सुन्दरलाल शर्मा का जन्म हुआ था। उनका जन्म विक्रम संवत 1938 की पौष कृष्ण अमावस्या अर्थात् 1881 ई० को हुआ था। इनके पिता थे पं. जयलाल तिवारी जो कांकेर रियासत में विधि सलाहकार थे, उनकी मां थीं देवमती देवी । पं. जयलाल तिवारी बहुत ज्ञानी एंव सज्जन व्यक्ति थे। कांकेर राजा ने उन्हें 18 गांव प्रदान किये थे। पं. जयलाल तिवारी बहुत अच्छे कवि थे और संगीत में उनकी गहरी रुचि थी। पं. सुन्दरलाल शर्मा की परवरिश इसी प्रगतिशील परिवार में हुई। चमसुर गांव के मिडिल स्कूल तक सुन्दरलाल की पढ़ाई हुई थी। इसके बाद उनकी पढ़ाई घर पर ही हुई थी।