Chhori aur prayaschit nibandh ka udeshiya likhiye
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Chori aur prayashchit essay and summary in hindi
Chori aur prayashchit – दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से चोरी और प्रायश्चित पर लिखे निबंध व् सारांश के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल को पढ़कर चोरी और प्रायश्चित पर लिखें निबंध व् सारांश के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं ।
Chori aur prayashchit essay and summary in hindi
Chori aur prayashchit essay and summary in hindi
प्रस्तावना– किसी व्यक्ति की किसी वस्तु या धन संपत्ति को चुराना चोरी कहलाता है. चोरी एक अपराध है. हमें कभी भी छोटी चोरी भी नहीं करनी चाहिए क्योकि छोटी छोटी चोरी करने की आदत आगे चलकर बड़ी बन जाती है और फिर वह व्यक्ति एक अपराधी बन जाता है.
चोरी करने के बाद जब व्यक्ति को यह एहसास होता है कि वह गलत कर रहा है और उसे सुधरना चाहिए तो एक तरह से वह प्रायश्चित करता है इसे ही प्रायश्चित कहते है.
चोरी और प्रायश्चित के बारे मे कहानी – चोरी और प्रायश्चित के बारे में विस्तृत रूप से समझने के लिए अब हम जानेंगे एक घटना के बारे में । एक गांव में एक परिवार था जो बहुत ही धनी परिवार था । उस परिवार मे दादा , दादी जी , एक बच्चा और उस बच्चे की माता पिता थे ।
वह बच्चा धीरे-धीरे बड़ा हुआ । जब बच्चा बड़ा हुआ तब वह अपने मित्रों के साथ स्कूल में पढ़ाई करने के लिए प्रतिदिन जाता था । उस बच्चे का नाम मोहन था ।
जब मोहन अपने मित्रों के साथ खेलने के लिए जाता था तब मोहन को खेलने का चस्का लग गया था । मोहन और उसके सभी मित्र स्कूल जाने की लिए घर से निकलते थे परंतु वह स्कूल न जाकर रास्ते में खेलते रहते थे । उनका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था । धीरे-धीरे समय बीतता गया । जब कई समय बीत गया तब मोहन और उसके सभी मित्र स्कूल घूमने के लिए गए थे ।
स्कूल के शिक्षक ने उन सभी को स्कूल ना आने पर सजा दी थी और सभी को 10 का फाइन स्कूल में जमा कराने के लिए कहा था । अब मोहन और उसके सभी मित्र परेशान हो गए कि अब हम सभी 10 रुपए कहां से लेकर आएंगे ।
इस परेशानी के कारण मोहन और उसके सभी मित्र परेशान रहने लगे थे । एक बार जब सुबह मोहन घर के बगीचे में खेल रहा था तब मोहन ने यह देखा कि उसके दादाजी घर के अंदर जा रहे हैं और मोहन भी दादाजी के पीछे घर के अंदर चला गया था ।
जब मोहन के दादाजी घर की एक अलमारी में पैसे रख रहे थे तब मोहन ने दादा जी को पैसे रखते हुए देख लिया था । मोहन के दिमाग में यह आइडिया आया की दादा जी के द्वारा जो पैसे अलमारी में रखे गए हैं उन पैसों को उठाकर स्कूल के टीचर को दे दूंगा ।
इसके बाद मोहन ने दादा जी के पैसे चुराकर स्कूल का फाइन भर दिया था ।जब दादा जी अलमारी में रखे हुए पैसे लेने के लिए गए तब दादा जी को पैसे वहां पर नहीं मिले थे । इसके बाद दादा जी का पूरा शक घर के नौकर पर गया था । दादाजी ने घर के नौकर पर शक करके उस नौकर को घर से निकाल दिया था ।
जब मोहन के पेपर हुए तब वह पेपर देने के लिए स्कूल गया था । परंतु मोहन ने पढ़ाई की ही नहीं थी जिसके कारण वह ठीक तरह से पेपर नहीं दे पाया था । जब परीक्षा का परिणाम स्कूल में घोषित किया गया तब मोहन और उसके सभी मित्र फेल हो गए थे जिसके बाद मोहन बहुत परेशान हो गया था ।
मोहन को यह डर लग रहा था कि यदि घर पर यदि फेल होने की बात पता चली तो उसको सजा दी जाएगी । इसके बाद मोहन ने यह निश्चय किया कि मैंने जो गलत कार्य किए हैं उन सभी के बारे में मैं अपने परिवार वालों को अवश्य बताऊंगा । मैं अपनी गलती का प्रायश्चित अवश्य करूंगा । यह सोचकर मोहन घर पर गया ।
इसके बाद मोहन ने सबसे पहले अपने दादा जी से माफी मांगने के लिए चला गया और दादा जी के पैर पकड़कर रोने लगा था । दादा जी ने उसे उठाया और कहा कि तू रो क्यों रहा है । मोहन ने दादा जी को सभी बात बता दी थी ।
जब मोहन दादा जी को यह बता रहा था कि मैं अपने मित्रों के साथ जब स्कूल पढ़ने के लिए जाता था तब हम सभी मित्र स्कूल न जाकर रास्ते में खेलते रहते थे जिसके कारण हम सभी ने पढ़ाई नहीं की थी । जब हम 1 दिन स्कूल पढ़ने के लिए गए तब स्कूल के शिक्षक ने हम सभी को सजा दी और 10 फाइन भरने के लिए कहा था ।