chidiya aur churungun kavita se hame kya seek milti h.
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छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात
और सुनी जो पत्ते हिलमिल
करते हैं आपस में बात
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
यह कविता हरिवंशराय बच्चन ने लिखी है। इस कविता में कवि ने किसी चिड़िया के चूजे की बाल-सुलभ जिज्ञासा का वर्णन किया है। नन्हा चूजा जल्दी से उड़ना चाहता है ताकि पूरी दुनिया देख सके और उसके बारे में जान सके। उस चूजे का नाम है चुरुंगुन। चुरुंगुन घोंसले से बाहर निकलता है और डालियाँ तथा पत्तों को देखता है। जब पत्ते सरसराते हैं तो उसे लगता है कि वे आपस में बातें कर रहे हैं। उसे लगता है कि उसने उड़ना सीख लिया है। लेकिन जब वह अपनी माँ से पूछता है कि क्या उसे उड़ना आ गया है तो उसकी माँ कहती है कि नहीं यह केवल उसके मन का भ्रम है।
डाली से डाली पर पहुँचा,
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झुककर जाना मूल;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
चुरुंगुन एक डाली से दूसरी डाली पर कूदता है और फूलों तथा कलियों को देखता है। जब वह पेड़ के नीचे झाँकता है तो उसे जड़ों के बारे में पता चलता है। जब वह फिर से पूछता है कि क्या उसे उड़ना आ गया है तो उसकी माँ कहती है कि यह केवल उसका भ्रम है।
कच्चे-पक्के फल पहचाने,
खाए और गिराए काट
खाने-गाने के सब साथी
देख रहे हैं मेरी बाट;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
अपने आस पास की दुनिया को जानने और समझने के क्रम में चुरुंगुन कुछ फलों को खाता है तो कुछ को नीचे गिरा देता है। इस तरह से उसे कच्चे और पके फलों की पहचान हो जाती है। उसे लगता है कि मौज मस्ती के लिए उसके साथी उसका रास्ता देख रहे हैं। वह अपनी माँ से अपना सवाल दोहराता है तो उसे फिर वही जवाब मिलता है कि अभी उसे उड़ने में देर लगेगी।
उस तरु से इस तरु पर आता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘नहीं, चुरुंगुन, तू भरमाया’
अब चुरुंगुन थोड़ा बड़ा हो चुका है। अब वह एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भी चला जाता है। कभी कभी वह धरती पर जाकर दाना भी चुग कर लाता है। लेकिन अभी भी उसकी माँ कहती है कि अभी उसे ठीक से उड़ना नहीं आया है।
मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोई अंदर से कहता है
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
‘आज सुफल हैं तेरे डैने,
आज सुफल है तेरी काया’
अब चुरुंगुन को ऐसा लगता है कि नीला आसमान उसे लगातार पुकार रहा है। उसे लगता है कि उसके अंदर से कोई शक्ति कह रही है कि जोर लगा के उड़ जा और पंख फड़फड़ाते हुए बस उड़ता ही चला जाए। इस बार जब वह अपनी माँ से पूछता है कि क्या उसे उड़ना आ गया है तो उसकी माँ का जवाब अलग होता है। उसकी माँ कहती है कि हाँ उसके शरीर में ताकत आ चुकी है और उसके डैने इतने मजबूत हो चुके हैं कि वह उड़ने का पूरा आनंद ले सकता है।
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